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________________ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन पर वास्तविकता इससे बहुत दूर है; क्योंकि जैन साहित्यका भापाकी दृष्टिसे उतना महत्त्व नही, जितना विचारोंकी दृटिसे है। इस साहित्यम मानवताको अनुप्राणित करनेवाली भावनाओंकी प्रचुरता है। ससारके किसी भी साहित्यके समक्ष इस साहित्यको तुलनाके लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। नवरसमयी हृदयको आन्दोलित करनेवाली पिच्छिल रसधारा इस साहित्यमें विद्यमान है। शब्द और अर्थकी नवीनता, शब्दों के सुन्दर विन्यास, मावोंका समुचित निर्वाह, कल्पनाकी ऊँची उड़ान, मानवके अन्तरंग और बहिरगका सजीव विश्लेपण इस साहित्यमें सर्वत्र मिलेगा। अतः हृदयमें एक भावना उत्पन्न हुई कि कतिपय हिन्दी जैन अन्योंका अध्ययन कर एक अनुशीलन प्रस्तुत किया जाय । यद्यपि हिन्दी भाषाम निवद्ध जैन साहित्य विशाल है, उसका सागोपाग अनुशीलन प्रस्तुत करना, तनिक कठिन है, तो भी इस प्रयासमे लब्धप्रतिष्ठ कवियों एवं लेखकोंकी प्रमुख रचनाओंका परिशीलन उपस्थित करनेका आयास किया गया है। अपभ्रंश भापाका साहित्य इतना विशाल है कि इस साहित्यपर एक वृहत्काय अनुशीलनात्मक ग्रन्थ लिखना आवश्यक है, अतएव प्रस्तुत परिशीलनमें इस भापाकी दो-एक रचनाएँ ही ली गई हैं। मैंने अपनी रुचिके अनुसार महाकवि स्वयम्भूदेव, पुष्पदन्त, बनारसीदास, मैया भगवतीदास, भूधरदास, धानतराय, दौलतराम, वृन्दावन प्रभृति प्राचीन हिन्दी जैन कवियों एव अनूपशर्मा, धन्यकुमार सुधेश, बालचन्द्र एम. ए. आदि नवीन कवियोंकी उन्हीं रचनाओका परिशीलन प्रस्तुत किया है, जो मुझे रुचिकर हुई है। यह परिशीलन दो भागोमें प्रकाशित हो रहा है। प्रथम भागमे प्राचीन कवियोंकी काव्य रचनाओका परिशीलन है तथा इस परिशीलन में भी सभी प्राचीन कवियोंकी रचनाएँ नहीं भी आ सकी है। रचनाओं का निर्वाचन मैने किमी क्रमसे नहीं किया है और न रचनाओंके मानदण्डको ही प्रधानता दी है। जो ग्रन्थ मेरे अध्ययनका विषय रहा है तथा किसी भी कारणसे जो मुझे प्रिय है, उसीका परिशीलन उपस्थित किया
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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