SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरातन काव्य-साहित्य कुछ समय बाद गजसिंह और गुणमालामें पुनः सन्धि हो गयी और दोनो आनन्दपूर्वक रहने लगे। एक दिन एक विद्याधरी गजसिंहको और विद्याधरीका पति गुणमालाको उठाकर ले गया। दोनोने दोनोको वासनानुरक्त बनानेके असफल प्रयल किये। वे पति-पत्नी दोनो ही अपने भीत्वतमें दृढ रहे। उनकी दृढताके कारण विद्याधर-दम्पत्तिकी वासना काफूर हो गयी, और वे सकट मुक्त हो पुनः मिले। कुछ समय पश्चात् दम्पतिने श्रीसम्मेद शिखरकी यात्रा की। कालन्तरमें इन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ। इस पुत्रको घोड़ेपर चढकर चौगान खेल्नेका बहुत शौक था। एक दिन रत्नशेखर मुनिसे इस राजकुमारने भी स्वदारसन्तोष और परिग्रहपरिमाण व्रत ग्रहण किये । विदर्भ नगरकी राजकुमारीसे इसका विवाह हुआ। अन्तम गजसिह और गुणमात्मने धर्मघोप मुनिसे जिनदीक्षा लेकर तप किया। ___ इस चरितमे मानव-जीवनके गग-विरागोंका सुन्दर चित्रण हुआ है। इसमे अनुरक्त और विरक्त युवक-युवतियोंकी मनोवृत्तिका बड़ा ही सरस और हृदयग्राह्य चित्रण किया गया है । वैभवकी अपारराशिके बीच रहकर भी व्यक्ति किस प्रकार प्रलोभनोको ठुकराकर नैतिकताका परिचय दे सकता है, यह गुणमालाके चरितसे स्पष्ट है । नारीका सारा अवसाद पातिव्रतसे ही दूर हो सकता है, स्वर-लहरीके प्रकम्पनमे नारीकी आत्मज्योति जाग्रत होती है। मिथ्याविश्वास और आडम्बर जीवनको कितना विकृत करते है, यह गजसिंहकी मन्त्र-तन्त्रको साधनासे स्पष्ट है । दृढ़ विश्वासकी विद्युत् बड़े-बडे सकटोके पर्वतोको चूर-चूर करनेकी क्षमता रखती है। नारी जीवनमे लबाका आवरण मगल-सूत्र है, इसके फट जानेसे वेदनाका ज्वार दवाये नहीं दवता, जीवन नारकीय बन जाता है। कविने वन, नदी, सन्ध्या और उपाका भी सरस चित्रण किया है।
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy