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हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन कारण इनको पृथक् काव्यकोटिमें रखा जा रहा है। चरित और कथाअथ इतने अधिक है, कि इनका अनुशीलनात्मक परिचय देना असभव-सा है । अतएव इस प्रकरणमें केवल तीन-चार प्रयोंके अनुशीलन देकर ही इस कोटिके काव्यों से परिचित करानेका प्रयास किया जायगा | इस चरितात्मक विशाल साहित्यका परिशीलन स्वय एक वृहद् अथ वन सकता है।
यह सुन्दर चरित-काव्य है। इसमें गनसिंह गुणमालका प्राचीन आख्यान दिया गया है । प्रसंगवश कविने अपने समयके समाज, सम्प्रदाय गजसिंह-गुणमाल
....... और राज्यका भी चित्रण किया है। कवि कहता है कि "" गोरखपुरी नगरीम अरिमर्दन नामका राजा राज्य करता
था, इसकी कनकावती नामकी रानीकी कोखसे गजसिह नामके राजकुमारका जन्म हुआ था। गनसिंहके विवाहके अनतर राजा-रानी अपने पुत्रको राज्यभार सौंप स्वय चारित्र पालने के लिए वनवासी हो गये। इसी गोरखपुरीम एक सेठकी कन्या गुणमालके स्प सौन्दर्यपर मुग्ध होकर गजसिंहने उसके साथ विवाह किया था। कारणवश गजसिंह गुणमालसे स्ठ गया और गुणमाला अकेली रहने लगी। एक विद्याधरने उसे शीलधर्मसे च्युत करना चाहा, परन्तु गुणमाला अपने व्रतपर दृढ़ रही । गुणमालाको शीलवती जानकर विद्याधरने अनेक विद्याएँ उसे भेंट की।
अव गजसिंह उससे सशक रहने लगा । वह किसी पुरुपकी तलागमे रहा और यन्त्र-मन्त्र के चक्करमे बहुत दिनों तक पड़ा रहा । उसने देवी, भैरव और यक्षको प्रसन्न करनेके लिए अनेक यल किये । उसकी इम प्रवृत्तिसे एक तान्त्रिक अवधूतने लाम उठाया और उसने अपने आधीन कर लिया। योगीने एक योगिनी-द्वारा गुणमालकी परीक्षा करायी। गुणमाला शीलशिरोमणि थी, उसके आगे किसीकी कुछ भी न चली।
१. यह अन्य अप्रकाशित है। प्रति प्राप्तिस्थान-जैनसिद्धान्तभवन, भारा।