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________________ हिन्दी - जैन-साहित्य- परिशीलन अनुकरण कर समाज, देश और जातिकी भलाई की जा राकती है। परोपकार या सेवा करनेके पहले अपना आत्मशोधन करना आवश्यक है, जिससे सेवक अपने सेवाकार्यसे च्युत न हो सके । ६२ चरित और कथा काव्य अतिरिक्त कुछ अधिक है । हिन्दी जैन साहित्यमे महाकाव्य और खण्डकाव्योंके काव्यग्रन्थ ऐसे भी हैं, जिनमें काव्यत्व अल्प और चरित्र धर्मोपदेश देनेके लिए तीर्थकरो या अन्य पुरुषोंके चरित्र लिखे गये है । कुछ ऐसी कथाएँ भी पद्यवद्ध है, जो प्रतोकी महिमा प्रकट करनेके लिए लिखी गई है। अपभ्रंश भाषामे १०-१५ चरित ग्रन्थ, २ बड़े-बडे कथाको एव ३०-३५ छोटी-छोटी कथाएँ आज भी उपलब्ध है। इसी प्रकार हिन्दीमे लगभग १०० चरित ग्रथ और २०० कथाऍ उपलब्ध हैं । इन कथाओमे चरित्र-चित्रणके साथ आनन्द और विषादका अपूर्व मिश्रण विद्यमान है । काव्य के मूल आलम्बन राग-द्वेपके विभिन्न रूपान्तर इन कथाओं और चरितकाव्योमे पाये जाते है । जीवनमे पाये जानेवाले भावोका चरित्र-काव्योमे यथेष्ट समावेश हुआ है । चरितोमे भिन्न-भिन्न पात्रोंकी भिन्न-भिन्न प्रकृतियोंकी सूक्ष्मता दिखलायी गयी है । सास्कृतिक विशेषताएँ तो इन ग्रन्थोंमें विगेपरूपसे उपलब्ध है । ये चरिग्रंथ और कथाग्रंथ रोचक होनेके साथ अहिसा सस्कृतिकै विशाल भवनकी ऑकियों सामने प्रस्तुत करते है । पाठक इनके अध्ययन और स्वाध्यायसे कुछ समय के लिए सासारिक विपमताओको भूल जाता है, उसके सामने आदर्शका एक ऐसा मनोरम चित्र खिच जाता है, जिससे वह अपनी कुत्सित वृत्तियोको परिष्कृत करने के लिए सकल्प कर लेता है। यद्यपि अपनी मानवीय कमजोरीके कारण पाठक थोड़े समय के पश्चात् ही अपने सकल्पको भूल जाता है और पुनः विपय-कपायोमे आसक्त हो पूर्ववत् आचरण करने लगता है, तो भी सत् सस्कारोका निर्माण होता ही है । इन ग्रन्थोंमे स्त्री-पुरुपोकी नैसर्गिक विशेषताएँ भी दिखलाई पडती
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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