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५८ हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन श्रेष्ठपुत्री क्षयंकरी रहती थी। राजाने मुनिराजसे भयंकरोकी भवावली पूछी । मुनि कहने लगे
यह पहले भवम उनके सेठ धवलक्री पत्नी थी, इसका नाम मल्लि देवी था। उनके राजा पद्मनाथने अष्टालिका पर्वका उत्सव सामूहिक स्पसे मनाया, धवल सेठ भी इसमें शामिल हुआ, पर मल्लि सेठानीको यह नहीं रुचा। पूजाके लिए सामग्री और पकवान बनवाये अवश्य, किन्तु अच्छी वस्तुएँ न लेकर सडे गले सामानसे सामग्रियों तैयार की, जिससे मुनियोंको आहार नहीं दिया जा सका। मल्लिकी भावनाएँ सदा कलुपित रहती थी; दान धर्ममे एक कानी कौड़ी भी खर्च करनेमें उसके प्राण सूखते थे; इस कारण पतिसे निरन्तर संघर्ष होता रहता था। इस कंजूसीके परिणामस्वरूप ही वह कुष्ठ रोगसे पीड़ित हो गयी। मुनिराज आगे बोले-स्त्रियाँ ही लोम नहीं करती, पुरुष भी परमलोमी होते हैं । वह कहने लगे कि कुण्डरूनगरमै लोभटत्त सेठ रहता था, कमला और लच्छा उसकी उदारमना पलियाँ थीं, दोनों स्त्रियोंमें अत्यन्त स्नेह था । सेठ बहुत ही लोभी था, जब कही वह जाना तो अपने भण्डार-घरका ताल बन्द कर जाता। ____एक दिन दो चारणमुनि सौभाग्यसे वहाँ आये, उनके वहाँ उतरते ही द्वार खुल गया। मुनिरानोंको आहारदान देनेसे उन्हें आकाशगामिनी और वन्धमोचनी विद्याएँ सिद्ध हो गयी। अतः सेठके घरसे बाहर जानेपर वे दोनो अपनी विद्याओं के प्रभावसे तीर्थाटन करने लगी। एक दिन पड़ोसिन स्टकर आयी और छिपकर उनके विमानमें बैठ गयी, दोनो सेठानियों के साथ उसने सहन्नकूट चैत्यालयके दर्शन किये और वहाँसे मूल्यवान रत्न ले आयी। संयोगकी बात वे श्रीमती रत्न लोमदत्त सेठके हाथ येचे । रनोंके सौंदर्य और गुणोंपर मुग्ध होकर ने उससे कहने लगा, 'तू जहाँसे इन रत्नोंको लायी है, उसकी खान बतला दें। लोभमे आकर पडोसिनने सेठको विमानम छुपाकर बैठा दिया । रलद्वीपसे लेटते समय