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________________ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन सफल हुआ है। किन्तु शान्तरस निरुपणकर सभी रास पर्यवसानको प्राप्त हुए है । जीवनके आवरणमं छुपे चिरन्तन राग-द्वेपोका जिस कविको जितना गहरा परिज्ञान होगा, वह उतना ही सफल खण्डकाव्य लिख सकेगा। जैन कवियोंमें यह परख-विद्यमान थी, निससे वे राग-द्धपका परिष्कार करनेवाली वैराग्यप्रद परिस्थितियोका निर्माणकर काव्यजगत्म सफल हुए । जीवनके क्रिया-व्यापारोंका संचालन रासग्रन्थोंके रचयिताआम विद्यमान था, जिससे वे घटना-विधानमं अधिक सफल हो सके हैं। __अननासुन्दरी रासाम अजनाके विरहका ऐसा मुन्टर चित्रण किया गया है, जिससे विरहिणीके जीवनकी समस्त परिस्थितियांका चित्र सामने प्रन्नुत हो जाता है। संस्कृत साहित्यम विरहकी जिन दस दशाओका नित्पण किया गया है, वे सभी अंजनाके जीवनमें विद्यमान हैं। विरहम प्रियसे मिलनेकी उत्कठा, चिन्ता अथवा प्रियतमके इष्ट-अनिष्टकी चिन्ता, स्मृति, गुणकथन आदि समी नैसर्गिक ढगसे दिखलाये गये है। विरहिणी अजनाके जीवनमे कविने सहानुभूतिकी भी कमी नहीं दिखलायी है। पति-द्वारा अकारण तिरस्कृत होनेसे अजनाके मनम अत्यन्त ग्व्यानि है, वह अपने सुखी बाल्यकालकी स्मृतिका पतिके प्रथम साक्षात्कारकी मधुर स्मृतिके अनुभव द्वारा अपने दुःख-संकटके समयको प्रसन्नतापूर्वक विता देती है। भगवद्भक्ति और सदाचार ही उसके जीवनका आधार है । वह एक क्षण भी अधार्मिक जीवन विताना पाप समझती है। पतिक इतने बड़े अन्यायको भी प्रसन्नतापूर्वक सहन करती हुई, अपने भाग्यको कोसती है । अंजनामें अपूर्व शालीनता है, पातिव्रतकी ज्योति प्रभामण्डल बनकर उमे आलोकित कर रही है। ___ अंजनाको गलतफहमीके कारण उसकी सास गर्भावस्थाम बरसे निकाल देती है । उस समयकी उसकी करुण अवस्थाको देखकर निष्टुरता भी स्टन किये विना नहीं रह सकती है। यह एक सरस खण्ड काव्य है। यद्यपि इसकी भाषा पर गुजरातीका पूर्ण प्रभाव है, तो भी रस-परिपाकम
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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