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पुरातन काव्य-साहित्य अवस्थाओंका उद्घाटन जीवनकै विभिन्न चित्रो द्वारा किया है । वर्णन और दृश्य-योजना भी सुन्दर बन पडी है।
धर्मसूरि विरचित १३ वी शतीका यह खण्डकाव्य है। इसमे भगवान् महावीरके समकालीन जम्बूस्वामीका चरित्राकन किया है। यह गृहस्थ
... अवस्थामें ही अपने बुद्धि-कौशल और वीरत्वके लिए जम्बूस्वामीरासा
" प्रसिद्ध थे। मगधसम्राट् विम्बसारके आदेशानुसार इन्होने पर्वतीय शत्रुको परास्तकर गौरव प्राप्त किया और अन्तम भगवान् महावीरके संघमे दीक्षित हो तपस्या की और निवांण-पद पाया। कविने इसमें गाईस्थ्य जीवनका सुन्दर चित्रण किया है। दाम्पत्यको मर्यादामे बद्ध कर शृङ्गारिक जीवन आध्यात्मिक जीवनपर किस प्रकार छा जाता है, इसका दिग्दर्शन कराया है। __ दपोंक्तियों वीर रसके पोषणमें कहाँ तक सहायक हैं, यह पर्वतीय राजाके दपसे स्पष्ट है । आत्म-विश्वास और आत्म-गौरवकी भावनाका जम्बूस्वामीमे अकनकर उनके प्रतिनायक पर्वतीय राजाके विचारोका कच्चा चिट्ठा सुन्दर ढगसे दिखलाया है। रस, नायक, दृश्यविधान, घटना-वैचित्र्य आदिकी दृष्टिसे यह खण्डकाव्य है, पर सवादोंका अमाव और कथावस्तुकी शिथिलता इसके सौन्दर्यको विकृत करनेमे सहायक हैं।
सभी रासा ग्रन्थ एक ही शैलीपर लिखे गये है। इनमें से अधिकाश खण्डकाव्योंमें काव्यत्व अल्प और पौराणिकता अधिक है। धर्मवार्ता अन्य सा होनेके कारण सुन्दर नीति और विश्वोपकारकी भावना
- अन्तर्हित है। इन ग्रन्थोके रचयिताओने धार्मिक आस्थाको खुलखुलनेके लिए सुदृढ और सौम्य दृष्टान्तोको प्रस्तुत किया है। मानवको इन्द्रिय और मनकी दासतासे छुड़ाकर अतीन्द्रिय आनन्दकी चौरस भूमिमें ल उपस्थित किया है। रासा ग्रन्थोंमे प्रेम और विरहके चित्रोका भी अमाव नहीं है। वेदनाकी अग्निमे तपाकर आध्यात्मिक रसानुभूतिकी तीव्रता दिखलायी है । वीर रसका चित्रण तो इन काव्योमे