________________
५४
हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन उभावनाएँ करनेमे सफल हुए है। पौराणिक कथानकके होनेपर भी विचार निखरे और पुष्ट है । इनसे कुछका विवरण निम्न प्रकार है
यह कवि पुष्पदन्तकी अमर कृति है । इसमें नौ सन्धिया है। पञ्चमी व्रतके उपवासका फल प्राप्त करनेवाले नागकुमारका चरित वर्णित है।
नागकुमारके जीवनको प्रकाशमें लाने के लिए कविने नागकुमारचरित
अपनी कल्पनाका पूरा उपयोग किया है। युद्ध और संघर्षकी परिस्थितिके क्षणामे होनेवाली नागकुमारकी विलक्षण मनोदशाका कविने वैज्ञानिक उद्घाटन किया है। आजकलके मनोविज्ञानके सिद्धान्त भले ही उसमे न हो, पर संघर्षकी स्थितिम मानवमन किस प्रकार ब्याकुल रहता है तथा कल्पनाके मुनहले परॉपर बैठ नभोमण्डलमें कितनी दूर तक विचरण कर सकता है, का आभास सहजमें ही मिल जाता है । इस खण्डकाव्यमें वस्तुवर्णनका कौशल और प्रबन्धकी पटुताका अद्वितीय मिश्रण है। कवि नागकुमारको बनरानके द्वारा देखे जानेका वर्णन करता हुआ कहता है
जहिं काणणते ठागोहतर, तहि हुँतट पल्लरिट सवरु ।। दिट परमेसरु कुसुम सर, आवासिट सणरु जणतिहरु ।।
आएल पुरिनु परियाणियड, मिश्चहिं जाइपि परियाणियट ॥ तं दिटु जयंधर णिवतणत, असकेट देट किं सो मणड । पुच्छिट काम किं आइअड, को तुहुं विणएण विराइयउ॥
कवि पुष्पदन्तका देशी भाषामें नागकुमार चरितके समान यह भी मुन्टर खण्डकाव्य है। इसमें यशोवर राजाका चरित्र कणित है । कविने
जनताकी भावनाका चित्रण यशोधरके चरित्रमें किया
" है। बीर-गाथाकालीन रचना होनेके कारण शक्ति और शौर्यका प्रदर्शन अधिक किया गया है। इस कायम मूर्त जीवनमें अमूर्तको, स्यूल शरीरमें सूक्ष्मको और क्षण-मंगुर संसारमे नित्य और अमरतत्वको अभिव्यजित करनेका प्रयास किया है। लौकिक प्रेमकी विभिन्न