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________________ ! पुरातन काव्य - साहित्य हिन्दी - जैन- खण्डकाव्य खण्डकाव्यमे जीवन के किसी खास पहलपर कविकी दृष्टि केन्द्रित रहती है । यद्यपि घटना- विधान, दृश्य-योजना और परिस्थिति-निर्माणका भी प्रयास खण्डकाव्यके निर्माताओको करना पडता है, पर जीवनके किसी खास अंगकी सीमामें बांधकर । जैन साहित्यकारोंने भी हिन्दी भाषामे अनेक खण्डकाव्योकी रचना की है। परिस्थिति निर्माणमें इन्हें अभूतपूर्व सफलता इसलिए प्राप्त हुई है कि जीवनके द्वन्ढोमें प्रवृत्तिसे हटकर निवृत्तिकी ओर ले जाना इनका व्येय था । इस कारण जीवनकी मर्मस्पर्शी घटनाओको घटित करानेके लिए परिस्थितियोका निर्माण सुन्दर ढगते हुआ है । ससारका कोई भी पदार्थ अपनी स्थितिमे नही रहना चाहता है, परिस्थितिकी ओर बढता है, क्योकि जड़ और चेतन सभी प्रकार के पदाथोमे परिवर्तन और गतिका होना अनिवार्य है। जैन हिन्दी कवियोने स्याद्बाद दर्शनकी अनुभूतिसे प्रत्येक पदार्थकी गति और परिस्थितिका अनुभव कर खण्डकाव्योंमें घटना-विधान इतने सुन्दर ढगसे घटित किये हैं, जिससे मानव जीवनके राग-विराग सहजहीमे प्रकट हो जाते है । ५३ पञ्चमीचरित, नागकुमारचरित, यशोधरचरित, नेमिनाथचउपई, बाहुबलिरास, गौतमरास, कुमारपाल - प्रतिवोध, जम्बूस्वामीरासा, रेवतगिरिरासा, संघपति समरारास, अञ्जना सुन्दरीरास, धर्मदत्तचरित, ललितागचरित, कृपणचरित, धन्यकुमारचरित, जम्बूचरित आदि अनेक जैनखण्डकाव्य देशी भाषा, पुरानी हिन्दी और परवती हिन्दीमे विद्यमान है । इन समी खण्डकाव्योमें घटना-वैचित्र्य के साथ चरित्र-चित्रण सफल हुआ है । मानव जीवनकी रागात्मिका वृत्तिके उद्घाटनके साथ शुद्धात्मानुभूतिकी ओर ले जानेकी क्षमता इन सभी खण्डकाव्यो में है । नायक, रस, बलुविधान, अलंकार-योजना और शैली आदि विभिन्न दृष्टिकोणोंकी अपेक्षासे ये सभी खण्डकाव्य सफल है । यह जैन कवियोंकी प्रमुख विशेषता है कि वे पुरातन कथावस्तुमे नवीन प्राणोकी प्रतिष्ठा कर नूतन और मौलिक
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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