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Feas a मस्थल
सिन्तु । अहिडायण व धरण पाए सीए ॥
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हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन उवहसइ संझाराउ सुह-बंधुरु । विदु मयाहरु मोत्तिय-दंतुरु । छिवह व मत्थउ मेरु-महीहरु । तुझुवि भज्युवि कवणु पईहरु । जं चंद-कंत-सलिलाहि सितु । अहिलेय-पणालु घ फुसिय चित्तु । जं विद्रुम-मरगय-ति आहि । थिउ गया व सुधरणु-पति आहि ॥ जं इंदणील-माला मसीए । मलिहइ बंदि मितीए वीए ॥ जहि पोमराय-पह तणु विहाइ । थिउ अहिणव-संझाराउ गाइ ॥
-पउमचरिड ७१३ इस महाकाव्यके दो खण्ड हैं-आदिपुराण और उत्तरपुराण । प्रथम खण्डमें ८० सन्धियाँ और द्वितीयमे ४० सन्धियाँ हैं। आदिपुराणमे तिसहि महापुरिस प्रथम . प्रथम तीर्थकर ऋषमनाथका चरित्र है और उत्तर
" पुराणमें अवशेष २३ तीर्थकरोकी जीवनगाथा है। गुणालंकार
- आदिपुराणकी कथावस्तुमे एकतानता है, पर उत्तरपुराणमे २३ कथाएँ है, एकका दूसरेसे कुछ भी सम्बन्ध नहीं | अतएव महाकाव्य के सभी पूर्वोक्त लक्षण आदिपुराणमे वर्तमान हैं ।
महाकाव्यकी सबसे बड़ी विशेषता कथावस्तुमें अन्वितिका होना है। आदिपुराणमे घटनाचक्रके भीतर ऐसे स्थलोका पूरा सन्निवेश है जो मानवकी रागामिका वृत्तिको उबुद्ध कर सकते हैं, उसके हृदयको मावमग्न बना सकते हैं। इसमें कथाका पूरा तनाव है। इसके नायकमें केवल कालकी अपेक्षासे ही विस्तार नहीं है, बल्कि देशापेक्षया भी है । नायक ऋषमनाथ-आदिनाथ उस समयके समाज और वर्गविशेषके प्रतिनिधि हैं। उनके जीवनमें समष्टिके जीवनका केन्द्रीयकरण है। महाकाव्यके नायकमे यही सबसे बड़ी विशेषता होनी चाहिये कि वह समष्टिगत भावनाओं और इच्छाओंको अपने भीतर रखकर मानवताका प्रतिष्ठान करें। सक्षेपमे यह सफल महाकाव्य है।
१वीं शतीमे नयनन्दिने १२ सन्धियोंमे सुदर्शन चरितकी रचना की है। यह ग्रन्थ एक प्रेम कथाको लेकर लिखा गया है। कविने बडे कौशलसे