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पुरातन काव्य-साहित्य इस कथाकी व्यञ्जनामे पञ्चनमस्कारका फल घटित किया है। प्रतिदिन सुदर्शन चरित
_ अरिहत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधुको सुशन भारत भक्तिपूर्वक नमस्कार करना प्रत्येक साधकका धर्म है। काव्यके बीच-बीचमे धार्मिक प्रकरण रखे गये है। धार्मिक व्यञ्जनाके साथ प्रेम-कथा कहनेकी यह साकेतिक शैली सूफी कवियो के लिए विशेष अनुकरणीय रही है। इस काव्य-ग्रन्थके कथानकके समानान्तर ही प्रेममार्गी कवियोने कथाएँ गढकर अपने सिद्धान्तोका प्रचार किया है।
प्रस्तुत काव्यग्रन्थमे यद्यपि शृगाररसकी प्रधानता है, तथापि इसका पर्यवसान शान्तरसमें हुआ है। कविने जहाँ एक और स्त्रीके सौन्दर्यचित्रण और आकर्षक परिस्थितियोंमे अपनी कल्पना एव सौन्दर्य-दर्शनकी अन्तर्दृष्टिका परिचय दिया है, वहाँ बीच-बीचमे जैनधर्मके सिद्धान्तोका भी स्पष्टीकरण किया है। नायिका-भेद, नख-शिख वर्णन, प्रकृति चित्रणके रसानुकूल प्रसग वडे मनोहर ढगसे प्रस्तुत किये है। जैन साहित्यमे इस महाकाव्यकी शैलीपर अधिक रचनाएँ नही हो सकी है। आकर्षक रूपसौन्दर्य ही इस महाकाव्यके आख्यानका आधार है। सुदर्शनका रूम ससारकी समस्त सुन्दर वस्तुओके समन्वयसे निर्मित है। इसके वर्णन, दर्शन या भावनामात्रसे किसीके भी हृदयमे गुदगुदी उत्पन्न हो सकती है। ___ कवि नयनन्दने अपनी सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि द्वारा मिन्न-भिन्न परिस्थितियोके वीच घटित होनेवाली अनेक मानसिक अवस्थाओका सुन्दर विश्लेषण किया है। अभयाके सामने जब सुदर्शन पहुंचता है तो वह उन्मुक्त हृदयसे प्रेमकी भीख माँगती है, किन्तु शीलपर हिमालयकी चधनकी तरह अडिग सुदर्शन मानसिक द्वन्द्वोंके बीच पड़कर भी कमनोरियोपर विजय पाता है
और स्पष्ट शब्दों में उसके प्रस्तावको ठुकरा देता है। क्षोभसे उत्पन्न उदासीनता और आत्मग्लानिकी भावनासे अभिभूत अभया शोर मचाती है, जिसका परिणाम दानवीय शक्तिपर मानवीय शक्तिके विजय रुपमे होता है । करुणा, रति, क्रोध, उत्साह आदि स्थायी भावोके अतिरिक कितने