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________________ पुरातन काव्य-साहित्य अवान्तर कथास्थान हैं। रामका निर्वाण लाभ कार्य नामक अर्थप्रकृति है । अवस्था और अर्थप्रकृतियोका मेल इसमें सुन्दर ढंगसे हुआ है । बीज अर्थप्रकृति - वंशाख्यानका प्रारम्भ नामक अवस्था - रामके साथ योग दिखलाना मुख सन्धि है । प्रतिमुख सन्धि कथाक्त वह सन्धियाँ १७ स्थान है जहाँ रामकी वानरवंशके विद्याधरोंसे मित्रता होती है । गर्भसन्धिमे कथाका विस्तार बहुत हुआ है । अवमर्ग सन्धिमे रामका वेदनाभिभूत हो जानेवाला कथाका त्यान है । रामका निर्वाण प्राप्त करना निर्वहणसन्धि-स्थान है, जहाँ कार्य और फलका योग हुआ है। इस महाकाव्यकी कथावस्तुकै नायक पद्म-राम है । यह धीरोदात हैं। इनके चरित्रमें महती उदारता है। इनमें शक्तिके साथ क्षमा तथा दृढ़ता और आत्मगौरव के साथ विनय तथा निरभिमानता है । यह त्रेशठ गल्लाकापुरुपोंमेसे हैं । इस महाकाव्यमें यों तो सभी रस है, पर शान्तरस प्रधान रुपने परिपक्क हुआ है । शृङ्गारकै संयोग और वियोग दोनों पश्चांका वर्णन कविने सुन्दर किया है । करुण रसके चित्रगमें तो अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है । युद्धमे भाई बन्धुओं काम आनेपर कुटुम्बियोके विद्याप पाषाणहृदयको मी द्रवीभूत करनेमें समर्थ है । रस नायक प्रकृति आदिकाल्से ही कवियोका आकर्षण केन्द्र रही है । स कवियोंने विभिन्न रूपोंमे प्रकृतिका चित्रण किया है । इस महाकाव्य मी प्रकृतिचित्रण और षट्ऋतुओंका वर्णन विशुद्ध प्रकृतिके साथ कालव रूपमें किया गया है । सन्ध्याकी सुरमाको कविने अनेक उपमा और उत्प्रेक्षाओंके सुन्दर जालमें वॉवना चाहा है, पर वह सुन्दरीका शब्दचित्र प्रस्तुत नहीं कर सका है। निम्न पंनिय देखने योग्य है वस्तुवर्णन
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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