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पुरातन काव्य-साहित्य
अवान्तर कथास्थान हैं। रामका निर्वाण लाभ कार्य नामक अर्थप्रकृति है ।
अवस्था और अर्थप्रकृतियोका मेल इसमें सुन्दर ढंगसे हुआ है । बीज अर्थप्रकृति - वंशाख्यानका प्रारम्भ नामक अवस्था - रामके साथ योग दिखलाना मुख सन्धि है । प्रतिमुख सन्धि कथाक्त वह
सन्धियाँ
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स्थान है जहाँ रामकी वानरवंशके विद्याधरोंसे मित्रता होती है । गर्भसन्धिमे कथाका विस्तार बहुत हुआ है । अवमर्ग सन्धिमे रामका वेदनाभिभूत हो जानेवाला कथाका त्यान है । रामका निर्वाण प्राप्त करना निर्वहणसन्धि-स्थान है, जहाँ कार्य और फलका योग हुआ है। इस महाकाव्यकी कथावस्तुकै नायक पद्म-राम है । यह धीरोदात हैं। इनके चरित्रमें महती उदारता है। इनमें शक्तिके साथ क्षमा तथा दृढ़ता और आत्मगौरव के साथ विनय
तथा निरभिमानता है । यह त्रेशठ गल्लाकापुरुपोंमेसे हैं ।
इस महाकाव्यमें यों तो सभी रस है, पर शान्तरस प्रधान रुपने परिपक्क हुआ है । शृङ्गारकै संयोग और वियोग दोनों पश्चांका वर्णन कविने सुन्दर किया है । करुण रसके चित्रगमें तो अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है । युद्धमे भाई बन्धुओं काम आनेपर कुटुम्बियोके विद्याप पाषाणहृदयको मी द्रवीभूत करनेमें समर्थ है ।
रस
नायक
प्रकृति आदिकाल्से ही कवियोका आकर्षण केन्द्र रही है । स कवियोंने विभिन्न रूपोंमे प्रकृतिका चित्रण किया है । इस महाकाव्य मी प्रकृतिचित्रण और षट्ऋतुओंका वर्णन विशुद्ध प्रकृतिके साथ कालव रूपमें किया गया है । सन्ध्याकी सुरमाको कविने अनेक उपमा और उत्प्रेक्षाओंके सुन्दर जालमें वॉवना चाहा है, पर वह सुन्दरीका शब्दचित्र प्रस्तुत नहीं कर सका है। निम्न पंनिय देखने योग्य है
वस्तुवर्णन