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हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन
आख्यान रूपमे आयी हैं। प्रासङ्गिक कथावस्तुमे प्रकरी और पताका
दोनों ही प्रकारकी कथाएँ है। पताका रूपमे सुग्रीव महाकाव्यत्व
और मारुत-नन्दनकी कथाएँ आधिकारिक कथाकै साथ-साथ चली है और प्रकरी रूपमे बालि, भामण्डल, वनजंघ आदि राजाओंके आख्यान हैं।
कार्य-व्यापारकी दृष्टिसे उक्त कथावस्तुमे प्रारम्भ, प्रयत्न, प्राप्त्यागा, नियताप्ति और फलागम ये पॉचों ही अवस्थाएँ पायी जाती हैं। विद्याधर
- वंगके वर्णनके उपरान्त अयोध्याकाण्डकी तीसरी
___सन्धिर्म कथासूत्र फल्की इच्छाके लिए उन्मुख होता है । इन्वाकुवंशके महाराज दशरथके प्रागणमे राम खेलते दिखलायी पडते हैं। द्वितीय अवस्था उस समय आती है जब राम विवाहकर घर लौट आते हैं । वन जाना, सीताका हरण होना और युद्ध करके रावणके यहॉसे सीताको ले आनेके उपरान्त रामका धार्मिक कृत्योंमें लीन हो जाना तथा लक्ष्मणकी मृत्यु के उपरान्त रामका वेदनाभिभूत होना और देवों-द्वारा बोध प्राप्त होना तीसरी प्राप्त्याशा नामक अवस्था है | रामका तपस्याके लिए जाना नियताप्ति नामक चौथी अवस्था और रामका निर्वाण प्राप्त करना फलागम नामक पॉची अवस्था है।
इस महाकाव्यमें कथावस्तुकै चमत्कारपूर्ण वे अग वर्तमान है, जो कथावस्तुको कार्यकी ओर ले जाते है। बीज प्रारम्भ नामक अवस्थासे अर्थप्रकृतियाँ ही दिखलायी पड़ता है, जिस प्रकार वीजमे फल छिपा
रहता है उसी प्रकार वशोत्पत्ति नामक आख्यानमें सारी कथा छुपी है । वानरवश, विद्याधरवश और राक्षसवाका पारस्परिक सम्बन्ध दिखलाकर कविने मानवीय और दानवीय प्रवृत्तियोके द्वन्द्वकी अभिव्यञ्जना की है। विन्दुका आरम्भ रामके जन्मसे होता है, कथाक वास्तविक विस्तार और निगमनका यही स्थान है। पताका और प्रकरीम बालिका तपाख्यान, विशल्याकै भवान्तर, हनूमानका निर्वाण लाम आदि