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पुरातन काव-साहित्य
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लिया है कि दशरथ-पुत्र और जनक-पुत्रीके निमित्तसे मेरी मृत्यु होगी । अतः उसने विभीषणको आप दोनोको मारनेके लिए नियुक्त कर दिया है, आप सावधान होकर कही छुप जायें। राजा दशरथ अपनी रखाके लिए देश-देशान्तरमे गये और मार्गमे कैकयीसे विगह किया। कुछ समय पश्चात् महाराज दशरयके चार पुत्र हुए और एक युद्धमे प्रसन्न होकर उन्होंने कैकयीको वरदान भी दिया । रामके राज्याभिषेकके समय कैकयीने वरदान मॅगा, जिससे राम-लक्ष्मण और सीता बन गये तथा महाराज दशरथने जिन-दीक्षा ग्रहण की। सीता-हरण हो जानेपर गमने वानरवगी विद्याधर पवनञ्जय और अञ्जनाके पुत्र हनूमान एव सुग्रीवसे मित्रता की । रामने सुप्रीवके शत्रु साहसगतिका वधकर सदाके लिए सुग्रीवको अपने वश कर लिया और इन्हीके साहाय्यते रावणका वधकर सीताको प्राप्त किया।
रावण जैन धर्मानुयायी था। प्रतिदिन जिनपूजा और लुति करता था, पर अनीतिके कारण उसके कुलका सहार हुआ। ___अयोध्या लौट आनेपर लोकापवादके भयसे रामने सीताका निर्वासन किया। सौभाग्यसे जिस स्थानपर जगलमें सोताको छोड़ा गया था, वजब राजा वहाँ आया और अपने घर ले जाकर सीताका सरक्षण करने लगा | सीताके पुत्र लवणाकुशने अपने पराक्रमसे अनेक देशोंको जीतकर वनजंघके राज्यकी वृद्धि की। जब यह वीर दिग्विजय करता हुआ अपोल्या आया तो रामते युद्ध हुआ तथा इसी युद्धमे पिता पुत्र परस्परमे परिचित भी हुए। सीता अमिपरीक्षा उत्तीर्ण हुई, विरक्त हो तपस्या करने चली गयी और स्त्रीलिङ्ग छेदकर स्वर्ग प्राप्त किया। मणकी मृत्यु हो जानेपर राम शोकाभिभूत हो गये, कुछ काल बाद बोध प्रास होनेपर दिगम्बर मुनि हो गये और दुद्धर तपत्याकर उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
यह सफल महाकाव्य है। इसकी आधिकारिक कथा रामचन्द्ररी कया है, अवान्तर या प्रासनिक कथाएँ वानरवश और विद्याधर वंशक