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२५४ हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन
भूधरदास-कविवर भूधरदास आगराके निवासी थे। इनकी जाति खण्डेलवाल थी। इनका समय अनुमानतः १७ वी शतीका अन्तिम भाग या १८ वी शतीका प्रारम्भिक भाग है । इनके द्वारा रचित पार्श्वपुराणकी प्रतिका लिपिकाल १७५४ है, अत: यह निश्चित रूपसे कहा जा सकता है कि इनका समय १८ वीं शतीका पूर्वार्द्ध ही सम्भव है। इनकी कविता उच्चकोटिकी होती है। श्री प्रेमीजीने इनकी कविताके सम्बन्धमे लिखा है-"हिन्दीके जैन साहित्यमें पार्श्वपुराण ही एक ऐसा चरित ग्रन्थ है, जिसकी रचना उच्चश्रेणीकी है, जो वास्तवमै पढने योग्य है और जो किसी संस्कृत प्राकृत ग्रन्थका अनुवाद करके नही, किन्तु स्वतन्त्र रूपम लिखा गया है । इनकी सभी रचनाओम कवित्व है। निम्न तीन रचनाएँ प्रसिद्ध है-१--पाचपुराण (महाकाव्य)-इसमें भगवान पार्श्वनाथका जीवन वर्णित है । २-जैनशतक-यह नीतिविषयक सुन्दर रचना है। इसमें १०७ कवित्त, सवैया, दोहा और छप्पय हैं । ३-पदसंग्रह इसम ८० पदोका संकलन है।
द्यानतराय-यह कवि आगराके निवासी थे। इनका जन्म अग्रवाल जातिके गोयल गोत्रमें हुआ था। इनके पूर्वज लालपुरसे आकर आगराम बस गये थे। इनके पितामहका नाम वीरदास और पिताका नाम न्यामदास था । इनका जन्म संवत् १७३३ में हुआ था और विवाह संवत् १७४८ में हुआ था। विवाहके समय इनकी अवस्था १५ वर्षकी थी। उस समय आगरामें मानसिंहजीकी धर्मशैली थी। कवि द्यानतरायने उसमे लाम उठाया था। कविको प० विहारीदास और प० मानसिहके धर्मोंपदेशसे जैनधर्मके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई थी। इन्होंने संवत् १७७७ मे श्री सम्मेदशिखरकी यात्रा की थी। इनका महान् अन्य धर्मविलासके नामसे प्रसिद्ध है। इस प्रन्यमे इनकी समस्त कविताएँ संगृहीत है, यह सकलन संवत् १७८९ मे कविने स्वयं किया है। इस सकलन में ३३३ पद संग्रहीत है, जो स्वयं एक वृहदकाय ग्रन्थका रूप ले सकते हैं।