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- परिशिष्ट
२४७ टापू गॉवके राजा कीरतसिह थे, यहीपर धर्मदासजीके कुल्मे मथुरामल्ल थे। यह ब्रह्मचर्यका पालन करने में प्रसिद्ध थे । कविने इन्हींके उपदेशसे सगुण मार्गका निरूपण करनेके लिए सवत् १६७१मे इस ग्रन्थकी रचना की थी। यह अच्छे कवि थे । भापापर इनका अच्छा अधिकार था ।
आनन्दधन या धनानन्द-यह श्वेताम्बर सम्प्रदायकै प्रसिद्ध सन्त कवि है । यह उपाध्याय यशोविजयजीके समकालीन थे । यशोविजयका जन्म सवत् १६८० बताया जाता है, अतः इनका काल भी वही है । हिन्दीमें इनकी 'आनन्दधनबहत्तरी' नामक कविता उपलब्ध है, यह रामचन्द्र काव्यमालामें प्रकाशित है। यह आध्यात्मिक कवि थे । इनकी रचनाओंमे समतारस और शान्तिरसकी धारा अवश्य मिलती है। रचनाएँ हृदयको स्पर्श करती हैं।
यशोविजय यह भी ध्वेताम्बर सम्प्रदायक प्रसिद्ध आचार्य है। इनका जन्म संवत् १६८० और मृत्यु सवत् १७४५ के आसपास हुई थी। यह गुजरातके डमोई नामक नगरके निवासी थे । यह नयविजयजीके शिष्य थे । संस्कृत, प्राकृत, गुजराली और हिन्दी भाषामे कविता करते थे। संस्कृत भाषामे रचे गये इनके अनेक ग्रन्थ है। यह गुजराती थे, पर विद्याभ्यासके सिलसिलेमें इन्हें काशी भी रहना पड़ा था। इसी कारण यह हिन्दीमे भी उत्तम कविता करते थे। इनके ७५ पदोका एक संग्रह 'जसविलास के नामसे प्रकाशित है। इनकी कविताम आज्यात्मिक मावोंकी बहुलता है। भाषा आडम्बर शून्य है, पर भाव ऊचे है।
खेमचन्द-यह तापगच्छकी चन्द्रशाखाके पण्डित थे । इनके गुरुका नाम मुक्तिचन्द्र था। आपने नागर देशमे संवत् १७६१ मे 'गुणमाला चौपई अथवा 'गजसिहगुणमालचरित'की रचना की है। यह ग्रन्थ अमीतक अप्रकाशित है। इसकी जो प्रति जैनसिद्धान्त भवन आरामे सुरक्षित
उसका लिपिकाल सं० १७८८ है । इनकी कवितामे वर्णनीकी विशेषता है। मापापर गुजरातीका बहुत बडा प्रमाव है। इनकी अन्य रचनाएँ
अशात है।