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हिन्दी - जैन-साहित्य- परिशीलन
१. नाममाला - एक सौ पचहत्तर दोहोंका छोटा-सा शब्दकोप | इसकी स० १६७० में जौनपुर रचना की थी ।
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२. नाटक, समयसार - यह कविवरकी सबसे प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण रचना है। इसकी रचना संवत् १६९३ मे आगगमें की गयी थी। ३. बनारसी विलास — इममें ५७ फुटकर रचनाएँ संग्रहीत है । इसका संकलन संवत् १७०१ मे पं० जगजीवनने किया था ।
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१. अर्द्धकथानक - इसमें कविने अपनी आत्मकथा लिखी है । इसमें संवत् १६९८ तककी सभी घटनाएँ दी गयी है।
भैया भगवनीदास - यह आगराके निवासी थे । ओसवाल जैनी और कटरिया गोत्रके थे | इनके पिताका नाम लालजी था और दशरथ साहू इनके पितामह थे | इनके जन्मसंवत् एवं मृत्युसंवत्कै सम्बन्धमे कुछ पता नहीं है। हॉ इनकी रचनाओंम संवत् १७३१ से १७५५ तकका उल्लेख मिलता है । वि० सं० १७११मे हीरानन्दजीन पंचास्तिकायका अनुवाद किया था, उसमें उन्होंने आगरामें एक भगवतीटास नामक व्यक्तिके होनेका उल्लेख किया है । सम्भवतः भैया भगवतीढास ही उक्त व्यक्ति थे । इन्होंने कविता में अपना उल्लेख भैया, भविक और दासकिशोर उपनामोंसे किया है। इनकी समस्त रचनाओं का संग्रह ब्रह्मवि लास के नामसे प्रकाशित है। यह वनारसीदासके समान अध्यात्मरसिक कवि थे। इनकी कवितामं प्रसादगुण एवं अलंकार सर्वत्र पाये जाते हैं। उर्दू और गुजराती भाषाका पुट भी इनकी रचनाओं में विद्यमान है | थोडे शब्दों में गहन अर्थ और परिष्कृत भावनाओका निरूपण करना इनकी कविताकी प्रमुख विशेषता है । सरसता और सरलता इनके काव्यका जीवन है ।
ब्रह्मगुलाल -- यह पद्मावती पुरवाल जातिके थे। यह चंदवार ( फिरोजाबाद, जिला आगरा ) के पास टापू नामक ग्रामके निवासी थे । इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ कृपणजगावनचरित्र है । इस ग्रन्थको प्रशत्तिसे अवगत होता है कि कविवर ब्रह्मगुलालनी भट्टारक बगभूपणके शिष्य थे ।