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२०४ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिवीलन इसे दूर करनेके लिए पहले अपनेको पूर्ण अहिंसक बनाना पड़ेगा, तम् देशका कल्याण हो सकेगा । परन्तु आपका मोह मुझे इस बातकी प्रेरण. दे रहा है कि मैं इस कठिनाईसे आपकी रक्षा करें।" ___राजुलकी इन बातोंको मुनकर नेमिनाथ हँस पड़ते हैं और कहने है कि फष्टसहिष्णु बनना प्रत्येक व्यक्तिको आवश्यक है । ये थोडेसे कष्ट किन गिनतःम है, जब नरक, निगोटके भयंकर कष्ट सह है तथा इस समय जा. हमारा राष्ट्र सन्तन है, प्रत्येक प्राणी हिंसासे छटपटा रहा है, उस समय तुम्हारी ये मोहभरी बात कुछ मी महन्च नही रखती । मैने अच्छी तरह निश्चय करने के उपरान्त ही इस मार्गका अवलम्बन लिया है।
इसी प्रकार रानुलने बारह महीनोंकी भीषणताका चित्राकन किया है. नेमिनाथ इन विमीपिकामा भयमीत नहीं होते हैं और वह अपने व्रतम दृढ़ रहते हैं । इस ग्रमंग सभी पद्य मुरल और मधुर है । कात्तिक मासन चित्रण करती हुई राजुल कहती है
पिय क्रानिक में मन कम रह जब भामिनि मान सनायेंगी। रचि चित्र-विचित्र सुरंग सबै, घर ही घर मंगल-गावेगी । पिय नूतन-नारि सिंगार किये, अपनो पिय टेर बुलावगी। पिय वारहिबार बरै दियरा, नियरा तरसावंगी। नेमिनाथका प्रत्युत्तरतो जियरा तरस सुन राजुल, ना तनको अपनो कर नान । पुद्गल भिन्न है भिन्न मर्व, वन छाँदि मनोरथ आन सयान । बूढेगो माई कलिधार में, नई चेतना को एक प्रमान । हंस पिवै पय मिन कर जल, सो परमातम आतन जाने । वसन्त ऋतुकं आगमनकी विमापिका दिन्नुलाती हुई राजुल कहती हैपिय लागगो चैत वर्मत सुहावना, फूलैंगी बेल सबै बनमाहीं। फूलेंगी कामिनी जाको पिया घर, फूलगी फूल सबै बनराई ।