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________________ प्रकीर्णक काव्य २०५ जहदाला खेलहिंगे ब्रनके बन मैं सव, वाल गुपाल र कुवर कन्हाई। नेमि पिया उठ आवो घरै तुम, काहेको करहो लोग हंसाई ॥ यह पं० दौलतरामकी एक सरस आध्यात्मिक कृति है । कविने जैनतत्वोकै निचोड़को इस रचनामें सकलित किया है। संस्कृतके अनेक ग्रन्यो o को पढ़कर जो भाव कविके हृदयमें उठे, उन्हे जैसेके छहलाला तैसे रूपमे छहढालामे रख दिया है । इस रचनाकी भापा गॅठी हुई और परिमार्जित है। कविने जीवनमे चिरन्तन सत्यको और सत्यकी क्रियाको जैसा देखा, जन-कल्याणके लिए वही लिखा । मानवताका चरमविकास ही कविका अन्तिम लक्ष्य है। अतः वह समस्त वन्धनोंसे मानवको मुक्तकर शान्वतिक आनन्द-प्रातिके लिए अग्रसर करता है । कविकी चिन्तनशीलता चन्द्रमाकी चाँदनीके समान चमकती है । प्रथम दालमे चारो गतियोंका दुःख, द्वितीयमे मिथ्यावुद्धिके कारण प्राप्त होनेवाले कष्ट, तृतीयमे सात तत्त्वके सामान्य विवेचनके पश्चात् सम्यक्त्वका विवेचन, चतुर्थमे सम्यग्ज्ञानकी विशेषता, पञ्चममे विश्वके रहत्याको अवगत करनेके लिए विभिन्न प्रकारके चिन्तन एव पष्ठम आचारका विधान है । प्रथम ढाल्मे कविने नारक, पशु, मनुष्य और देवोंके भवप्रमोंका कथन करते हुए बताया है कि अनादिकालसे यह प्राणी मोहमदिराको पीकर अपने आत्मस्वरूपको भूल ससार-परिभ्रमण कर रहा है। कविने कितनी गहराईके साथ इस भव-पर्यटनका अनुभव किया हैमोह महामद पियौ अनादि, भूल आपको भरमत वादि । x काल अनन्त निगोद मंझार, बोत्यौ एकेन्द्री वन धार ॥ एक स्वासमै अठदस बार, जन्मौ मस्यौ मस्यौ दुःखमार । निकसि भूमिजल पावक भयौ, पवन प्रत्येक वनस्पति थयो। दुर्लभ लहि ज्यौं चिंतामणी, त्यौ पर्याय लही सतणी । X
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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