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हिन्दी - जैन साहित्य-परित्रीलन
कविने इस रचनामै युवकोके आदर्श के साथ युवतियोंके आदर्शका भी सुन्दर अकन किया है। जबतक देशका नारी समाज जाग्रत न होगा और "विवाह ही जीवनका उद्देश्य है" इस सिद्धान्तका त्याग न करेगा तबतक राष्ट्रका कल्याण नही हो सकता । राजुलने ऐसा ही आदर्श प्रस्तुत किया है । भोग जीवनका जघन्य लक्ष्य है, व्यक्ति जब भोगवादसे ऊपर उठ जाता है, तभी वह सेवा कार्यमे प्रवृत्त हो जाता है। जब मातापिता राजुलको पुनः वरान्वेपणकी बात कहकर सन्तुष्ट करते हैं, तब क्या ही सुन्दर उत्तर देती है
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काहे न बात सम्हाल कहाँ तुम जानत हो यह बात भली है गालियाँ कादत हो हमको सुनो तात भली तुम जीभ चली है ॥ मैं सबको तुम तुल्य गिनौ तुम जानत ना यह बात रही है । या भवमें पति नेमप्रभू वह लाल विनोदीको नाथ बली है ॥
जैन कवियोने वारहमासोंकी रचना कर वीरता और राष्ट्रीयताकी भावनाओंका सुन्दर अंकन किया है । यद्यपि वारहमासोंमें सवाद रूपमे सेवा और वैराग्यकी भावना ही अन्त मे दिखलाई गई है, परन्तु संवादोके मध्यमे विभिन्न मानवीय भावनाओंका अकन भी सुन्दर हुआ है । प्रस्तुत वारहमासा कवि विनोदीलाल- द्वारा विरचित है। इसमे राजुल अपने संकल्पित पति नेमिनाथसे अनुरोध करती है कि "स्वामिन्! आप इस युवावस्थामे क्यों विरक्त होकर तपस्या करने जाते है ? यदि आपको तपस्या करना ही अभीष्ट था और आप देशमे अहिंसा सस्कृतिका प्रचार करना चाहते थे तो आपने आपाढ़ महीनेमे यह व्रत क्यो नहीं लिया ? जब आप श्रावणमें विवाहकी तैयारी कर आ गये, तब क्यों आप इस प्रकार मुझे ठुकराकर जा रहे है। मैं मानती हूँ कि राष्ट्रोत्थानमे भाग लेना प्रत्येक व्यक्तिका कर्तव्य
बारहमासा नेमिराजुल
है । स्वर्णिम अतीत प्रत्येक सहृदयको प्रभावित करता है । राष्ट्रकी सम्पत्ति
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