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१७० हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन विरंगी क्यारियोंमे सिद्धान्तोंकी कुसुमवाटिका आरोपित करती है। यह वाटिका केवल इन्द्रियोको ही तृप्ति नहीं देती, प्रत्युत अतीन्द्रिय जगत्को भी शान्ति प्रदान करती है । जीवनके रागात्मक सम्बन्धोसे पृथक् हो मानव आध्यात्मिक लोकमें विचरण करने लगता है। जैन कवियोने स्मकके अमूर्त सिद्धान्तोमे और मूर्त कथावस्तुमे समानान्तर चलनेवाली एक साम्य भावना अकित की है। साग्य प्रायः इतना स्पष्ट और कथाका आवरण इतना झीना है कि सिद्धान्त स्वय बोलते हुए सुनाई पड़ते हैं।