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आध्यात्मिक रूपक काव्य
लालसासे जगत्के कोलाहलपूर्ण वातावरणसे निकलकर जीवनकी आनन्दमयी निधियाँ एकत्रित करनेमे सलग्न है तथा छल-कपट-राग-द्वेप-मोहमाया-मान-लोम आदि विकारोका परिमार्जनकर आत्मानन्दमे विचरण करना चाहता है और अपने पाठकोको भी आत्मसरितामे अवगाहन, मजन और पान करनेकी प्रेरणा करता है । सक्षेपसे यह अनघ पद्य-बद्ध रूपक है।
एकसौ आठ पोंमें कवि भगवतीदासने आत्मज्ञानका सुन्दर उपदेश दिया है । यह रचना बड़ी ही सरस और हृदय-बाह्य है । अत्यल्स कथानक
र के सहारे मात्मतत्त्वका पूर्ण परिज्ञान सरस शैलीमे करा
" देनेमे इस रचनामे अद्वितीय सफलता प्राप्त हुई है। कवि कहता है कि चेतन राजाकी दो रानियाँ हैं-एक सुबुद्धि और दूसरी माया। माया बहुत ही सुन्दर और मोहक है। सुबुद्धि बुद्धिमती होनेपर मी सुन्दर नहीं है । चेतन राजा माया रानीपर बहुत आसक्त है, दिनरात भोगविलास में सलग्न रहता है । राज-काज देखनेका उसे विल्कुल अवसर नहीं मिलता है, अतः राज्यकर्मचारी मनमानी करते है। यद्यपि चेवन राजाने अपने शरीर देशकी सुरक्षाके लिए मोहको सेनापति, क्रोधको कोतवाल, लोमको मत्रो, कर्म उदयको काजी, कामदेवको प्राइवेट सेक्रेटरी
और ईर्ष्या-घृणाको प्रबन्धक नियुक्त किया है, फिर भी शरीर-देशका शासन चेतनराजाकी असावधानीके कारण विशृंखल्ति होता जा रहा है । मान और चिन्ताने प्रधानमन्त्री बनने के लिए संघर्ष आरम्भ कर दिया है। इधर लोम और कामदेव अपना पद सुरक्षित रखनेके लिए नाना प्रकारसे देशको त्रस्त कर रहे है । नये नये प्रकारके कर लगाये जाते है, जिससे राज्यकी दुरवस्था हो रही है। शन, दर्शन,सुख, वीर्य जो कि चेतन रानाके विश्वासपात्र अमात्य हैं, उनको कोतवाल, सेनापति, प्राइवेट सेक्रटरी आदिने खदेड़ बाहर कर दिया है। शरीर-देशको देखनेसे ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ चेतनराजाका राज्य न होकर सेनापति मोहने अपना