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________________ आध्यात्मिक रूपक काव्य चेतनगढ़ शत्रुओसे खाली हो रहा था, शत्रुसेना माग रही थी और चेतन राजाने गुणस्थान प्रदेशोका मार्ग ग्रहण कर अपने गढ़के कोने कोनेसे शत्रुके भगानेका कार्य आरम्भ किया । यद्यपि मोहराजाकी सेना अस्तव्यस्त थी, फिर भी कुछ सुभट, जिनमें प्रधान लोभ, छल, कपट, मान, माया आदि थे, छिपे हुए उचित समयकी प्रतीक्षामें थे। चेतन राजा मिथ्यात्व, सासादन, सम्यग्मिथ्यात्व और अविरत स्थानोसे मोहकी सेनाको खदेडता हुआ आगे बढ़ा और देशविरत, प्रमत्त एवं अप्रमत्त देशमे जाकर उसने मोह राजाके बलशाली सेनापति प्रमादका हनन किया। इस वीरके मारे जानेसे मोहकी सेना बलहीन होने लगी। भेद-विज्ञानका अस्त्र लेकर चेतन राजाने यहाँ भयकर युद्ध किया और क्षपकणीहूँद-हूँढकर शत्रुओंको परास्त करने के मार्गका आरोहण कर अपूर्वकरण और अनिवृचिकरण नामक नगरोंमे पहुँच शनावरणके दो वीर, मोहनीयके चार और नामकर्मके तीस वीरोंको धराशायी किया। सूक्ष्म लोमका विध्वंस करनेके लिए अपने राज्यके दसवे नगर सूक्ष्मसाम्परायमें प्रवेश करना पड़ा । यहाँ थोड़ी देर तक सूक्ष्म लोमके साथ युद्ध हुआ। बेचारा जर्जरित लोभ चेतन राजाका सामना नहीं कर सका और ध्यानवाण-द्वारा विद्ध होकर गिर पड़ा। चेतन राजाने अव समाधि अस्त्रको अपनाया, उसने समस्त कपाय शत्रुओको इस एक ही वाण-द्वारा परास्त कर ग्यारहवे और वारहवे नगरोको शत्रुओसे खाली कराया। यद्यपि ग्यारहवा नगर उपशान्त मोह चेतन राजाके भयसे यों ही शत्रुओसे खाली हो गया था, इसलिए उसे इस नगरमें जाना नहीं पड़ा । वारहवें क्षीण मोह नगरमें पहुंचकर मोह राजाको चेतन राजाने खूब पटका और उसका सर्वनाश कर कतिपय अवशेष शत्रुओंको परास्त करनेके लिए तेरहवे नगर सयोगकेवली मे पहुँचा और वहाँ विजयका डंका बनाता हुआ केवलज्ञान- लक्ष्मीको प्राप्तकर निहाल हो गया । इस समय एक ओर विजयी चेतन राजा आनन्दमे मन शन-दर्शन सुख-वीर्यको प्रासकर निष्कटक राज्य करने
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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