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आध्यात्मिक रूपक काव्य अनेकवार तुमने मोहरानाकी सेनाको परास्त किया है, जल्द जाओ। इसी प्रकार दर्शन, चारित्र, सुख, वीर्य आदि भी क्रमशः चेतनराजाके समक्ष उपस्थित हुए और अपनी-अपनी विशेषताएँ बतलाकर बैठ गये। चेतनराजाने अपनी समस्त सेनाको आज्ञा दी कि शीघ्र ही तैयार होकर एकत्रित हो जाय; आज भयकर युद्धका सामना करना होगा।
ज्ञानदेव अपनी प्रशंसा सुनकर प्रसन्न हो गया था, फिर भी वह शत्रुके पराक्रमसे सशंक था अतः विनीत होकर कहने लगा-"प्रभो ! अपराध क्षमा हो तो प्रार्थना करूँ।"
चेतनराजा-"वीरवर ! तुम्हारे ऊपर तो सारे युद्धका निपटारा निर्भर है। इस समय तुम्हें अप्रसन्न करनेसे मेरा कार्य किस प्रकार चल सकेगा ? अतः निस्सकोच जो कहना चाहो, कहो; डरनेकी कोई आवश्यकता नहीं । युद्धके अवसर पर वीरोंकी बात मानी जाती है। जो राजा रणनीतिविज्ञ वीरोकी वात नहीं सुनता वह पीछे पश्चात्ताप करता है, अतः आप निर्भय होकर अपनी बातें कहें ।
ज्ञानदेव-"प्रमो, युद्धके लिए आक्रमण करनेके पूर्व दूत भेजकर शत्रुके प्रधान सचिवको या उसके किसी प्रतिनिधिको बुल्वा लीजिये तथा जहाँ तक हो सके सन्धि कर लेना ही ठीक होगा।" __ चेतनराजा-"शानदेव | आज तुम युद्धके अवसरपर कातर क्यों हो रहे हो ? हमारी शक्ति अपार है, विश्वास करो, विजय होगी । घरमे दुश्मनको बुलवाना कहातक उचित है । राजनीति बड़ी विलक्षण होती है, अत: अव सन्धिका अवसर नही है। इस समय युद्ध करना ही हमारे लिए श्रेयस्कर है।"
शानदेव-"देव ! आप मोहराजाकी अपार शक्तिसे परिचित होकर भी इस प्रकारकी बाते कर रहे है। मेरा विश्वास है कि जब आपके सामने राग-द्वेष नाना प्रलोभनोंके साथ सुन्दर रमणियोंके समूहोंको लेकर प्रस्तुत