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१३० हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन सतहपर लगे विकारोको ही नहीं, अपितु आन्तरिक जगत्मे प्रविष्ट हो प्रमाद और बुराइयोको भी प्रक्षालित कर देती है। कला-सौन्दर्यके मर्मोंने जनोद्वोधनके लिए ऐतिहासिक काव्योकी आवश्यकता इसीलिए प्रतिपादित की है, जिससे जीवनकी पलायन और टैन्यवृत्ति छूट जाय तथा भाववीचियाँ एक लयसे तरगित हो पाठकको रसमम बना सके । पूर्वजोके वल, वैभव और विक्रमसे अनुप्राणित हो मानव जीवन-सग्राममे आन्तरिक और बाह्य द्वन्दोके मध्य लडखडाता हुआ लोकमगलके दीप प्रज्वलित कर सके तथा जीवनके चरम लक्ष्य आनन्दानुभूतिको पा सके।
मक्ति-विभोर हो जैन कवियोने अपने धर्माचायौँका जीवनवृत्त भी काव्यामे अकित किया है। इस आम्नायम गुरुका स्थान देवके तुल्य माना गया है, अतः देवतुल्य उनकी भक्ति करना और अपनी श्रद्धा भावनाको उनके चरणोमे उड़ेलना जीवनोत्थानके लिए परम आवश्यक है। हिन्दी भाषाके जैन कवियोंने सहस्रो गीत महापुरुषोके कीर्ति-स्मरणमें रचे है, जिनमे सूक्ष्म और व्यापक धार्मिक भावनाएँ व्यक्त हुई है । सरस
और मनोहर राग-रागनियोमे रचे जानेके कारण इन गीतोमे अपूर्व माधुर्य और लालित्य है । ये गीत शृगार-भावनाके स्थानमे हृदयकी सात्त्विक और उदात्त भावनाओको उत्तेजित करते हैं । जैन गुरु और मुनियोंने अपने धर्म-प्रचारके लिए जो त्याग या चमत्कार दिखलाया है, उसका सरण इन गीतोमे किया गया है। गीतोकी ओर लोकरुचि विशेष रहनेके कारण तथा अपनी भावानुभूतिको व्यक्त करनेकी सुविधा अधिक होनेके कारण जैन कवियोने गीतिकाव्यका प्रणयन अधिक किया है।
तीर्थयात्रा या अन्य धार्मिक उत्सवोके अवसरपर ऐतिहासिक गीत गाये जाते है, इन गीतामे पुरातन गौरव-गाथाएँ निहित रहती हैं। जिससे साधारण व्यक्किमे धार्मिक भावना उमड़ जाती है और वह अपने धर्म-प्रचारके महत्त्वका मूल्याङ्कन कर लेता है। महापुरुपोका कीर्ति-सरण करनेसे धृति और साहसकी भावना जागृत हो जाती है। दानवीरोंकी