________________
१२०
हिन्दीजैन-साहित्य-परिशीलन
प्रति इनका एक विशेष भावात्मक दृष्टिकोण है, जिससे जगत्के विभिन्न सत्योका विश्लेषण बडे ही सुन्दर ढगसे किया है। अहकार और ममकार जो कि जीवनके सबसे प्रबल विकार है, जिनके कारण हमारा जीवन निरन्तर विचलित रहता है, का स्पष्ट और भावनात्मक निरूपण किया गया है । सूरदासके ही समान कवि बनारसीदास भी कहते हैं
ऐसे क्यों प्रभु पाइये, सुन मूरख प्रानी । जैसे निरख मीरिचिका, मृग मानत पानी ॥ ज्यो पकवान चुरैलका, विषयरस त्यो ही। ताके लालच तू फिरे, भ्रम भूलत यों ही ॥ देह अपावन खेटकी, अपनी करि मानी।
भाषा मनसा करम की, तें अपनी करि जानी ॥ कवि भूधरदास मी संसारके विपयोसे सावधान करते हुए कहते हैंमेरे मन सुवा, जिनपद पीजरे वसि, यार लाव न घार रे । संसार में बलवच्छ सेवत, गयो काल अपार रे। विषय फल तिस तोड़ि चाखे, कहा देख्यो सार रे।
कवि बुधजन कहते है
रे मन मूरख बावरे मति दीलन लावै । अपरे श्री अरहन्तकौं, यो मौसर जावै ॥ नरभव पाना कठिन है, यो सुरपति चाहै। को जाने गति काल की, यौ अचानक आवै ॥ छूट गये अब छूटते, जो छूटा चावै । सब छुटै या जालौं, यो आगम गावै ॥