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________________ पदोका तुलनात्मक विवेचन नया चरखला रंगारंगा, सबका चित्त बुरावै। पलटा चरन गये गुन अगले, अव देखै नहिं भावै ॥ चरखा० ॥ मोटा महीं कात कर भाई, कर अपना सुरक्षेरा । अन्त भाग में इंधन होगा “भूधर" समक्ष सबेरा ॥ चरखा० ॥ रूपकोमें जैन-पद-रचयिताओने निर्गुण सन्तोके समान आध्यात्मिक रहस्योंकी अभिव्यक्ति अपूर्व ढगसे की है। आध्यात्मिक जीवनके बीज आत्मनिरीक्षण और पश्चातापकी भावनापर जैन कवियोने विशेष जोर दिया है। __उपासनाके लिए उपास्यके विशिष्ट व्यक्तित्वकी आवश्यकता-समझ सगुण भक्तिका आविर्भाव हुआ। सगुण उपासकोंमें कृष्णभक्ति-गाखा और रामभक्ति शाखामे श्रेष्ठ कलाकार हुए, जिन्होने पद और गीतोकी रचनाकर हिन्दीके भण्डारकी वृद्धि की। महाकवि सूरदासने पद-साहित्यमे नवीन उद्भावनाएँ, कोमल कल्पनाएँ और वैदग्धपूर्ण व्यजनाएँ की। वस्तुतः सूर माव-जगत्के सम्राट माने गये हैं। हृदयको जिवनी गहरी थाह सूरने ली, उतनी शायद ही किसी अन्य कविने ली हो । यद्यपि सूरने अपने पदोको रचना जयदेव और विद्यापतिकी गीत पद्धतिपर की है। फिर भी सजीवता, चित्रमयता, मनोवैगानिकता और स्वामाविकताके कारण इनके पदोंमे मौलिकता पूर्णरूपसे विद्यमान है। जैन-पद-रचयिताओंसे सूरके पद कल्पक्ष और भावपक्षकी दृष्टि से अनेक अशोंमे साम्य रखते है। जिस प्रकार सूरने गौरी, सारग, आसावरी, सोरठ, भैरवी, धनाश्री, ध्रुपद, विलावल, मलार, जैतिश्री, विहाग, शझोरी, सोहनी, कान्हरा, केदारा, ईमन आदि राग-रागनियोमे पदोकी रचना की है, उसी प्रकार प्रभाती, बिलावल कनडी, रामकली, अलहिया, आसावरी, जोगिया, माझ, टोडी, सारग, लहरि सारंग, पूरवी, गौड़ी, काफी कनड़ी, ईमन, अशोरी, खमाच, अहिंग, गारो कान्हरो, केदारा, सोरठ, विहाग, माल
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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