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पदोका तुलनात्मक विवेचन
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-की धूर्तताका विश्लेषण किया है, वहाँ कवि भूधरदासने मायाके मोहक कायका निरुपण करते हुए उसकी ठाईका परिचय दिया है । भूधरदासके इस पदमे व्यग्यका पुट रहनेसे सर्व साधारणको अधिक प्रभावित करता है । कवि भूषराम कहता है
सुन ठगनी माया, तैं सब जग ठग खाया ।
टुक विश्वास किया जिन तेरा, सो मूरख पछिताया ॥ सुन० ॥ आपा तनक दिखाय बीज ज्यां, मूढ़मती ललचाया । करि मद अंध धर्म हर लीनौ, अंत नरक पहुँचाया ॥ सुन० ॥ केते कंथ किये तैं कुलटा, तो भी मन न अघाया । किसही सौं नहि प्रीति निवाही, वह तजि और लुभाया ॥ सुन० ॥ 'भूधर' ठगत फिरै यह सबको, भौटू करि जग पाया । जो इस उगर्नाको ठग बैठे, मैं तिसकों सिर नाया ॥ सुन० ॥
नाम सुमिरनको सभी धर्मोोंने एक विशेष स्थान दिया है। नामस्मरण करनेसे मन पवित्र होता है तथा आराध्य के उज्ज्वल गुणोंके प्रति सहज ही आकर्षण उत्पन्न होता है । वस्तुतः नामस्मरण वाह्य साधना नही है, किन्तु एक आध्यात्मिक साधना है, ध्यान का एक भेद है । जो विना भाव के मन्त्रवत् नाम दुहराने को सब कुछ मानते है, कवीरने उनका खढन किया है । कबीर ने कहा है – “पडित व्यर्थ ही बकवाद करते हैं, यदि राम कहने मात्र से ही ससारको मुक्ति मिल जाय तो 'खॉड' शब्दके कहने मात्रसे ही हमारा मुँह मीठा हो सकता है । यदि 'आग' कहनेमात्रसे ही पॉव जल्ने गे अथवा 'पानी' कहनेमात्र से ही प्यास जाती रहे तथा 'भोजन' कहने मात्रसे ही भूख मिट जाय तो सभी मुक्तिके भागी हो सकेंगे । परन्तु केवल ऐसे मान्त्रिक स्मरणोसे वास्तवमे कोई लाभ नहीं ।" जैन मान्यतामे भी विना, हार्दिक भावके नामस्मरण या माला फेरना निरर्थक माना गया है । "यस्मात् क्रियाः प्रतिफलन्ति न भावशून्याः " भावरहित नामस्मरण या