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हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन तुलनात्मक दृष्टिसे कबीर और दौलतरामकै उपर्युक्त पढोमे उपमान प्रायः समान हैं। श्रमको व्यक्त करनेके लिए कवीरने मुआकी नलिनी, कर्णधृत स्वर्ण, सिहका प्रतिविम्ब, स्कटिकशिलाम गजके दाताका प्रतिविम्य
और वन्दरका घर-घर नाचना आदि दृष्टान्त दिये है। कवि दौलतराम ने सुआकी नलिनी, कर्णधृत स्वर्ण आदि उदाहरणोंको ही लेकर भ्रमका सुन्दर विश्लेषण किया है । कबीरदासने जहाँ उदाहरणोंके द्वारा ही भ्रमकी अभिव्यक्ति की है, वहाँ दौलतरामने भ्रमकी अमिन्यक्तिमे भ्रम क्या है, किस प्रकार हो रहा है तथा उसे किस प्रकार दूर किया जा सकता है, आदि विवेचन भी किया है। अर्थात् उनकी दार्शनिक भूमि अपेक्षाकृत विशद है।
कवीरने मायाका विवेचन करते हुए बतलाया है कि इस मोहिनी मायाने सारे ससारको ठग लिया है। मायाकै कारण ही विष्णु, शिव आदि देव भी लक्ष्मी और भवानीके आधीन है। मायाकी व्यापकताका विवेचन करता हुआ कवि कहता है
माया महा ठगिनी हम जानी। तिरगुन फॉस लिये कर डोले, बोले मधुरी बानी ॥ केगव के कमलाद्वै बैठी, शिव के भग्न भवानी । पंडा के भूरति है बठी, तीरथ में भइ पानी ॥ योगी के योगिनी है वैठी, राजा के घर रानी । काहू के हीरा है वैठी, काहु के कौड़ी कानी । भक्तन के भक्तिनि है वैठी, ब्रह्मा के ब्रह्मानी ।
कह 'कबीर' सुनो हो संतो, यह सब अकय कहानी । कवि भूधरदासने भी मायाके उसी ठगिनी रुपका कवीरते मिलताजुलता विवेचन किया है। मायाको ठगिनीका रूपक ढोनोंका समान है। अन्तर इतना ही है कि जहाँ कवीरने केवल उदाहरणो-द्वारा माया