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________________ पदाका तुलनात्मक विवेचन अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ । ज्या शुक नभचाल बिसरि नलिनी लटकायौ । चेतन अविरुद्ध शुद्ध दरशवोधमय विशुद्ध , तनि जडरस-फरस-रूप, पुदल अपनायो। इन्द्रिय सुख दुख मे नित, पाग राग रुख में चित्त, दायक भव-विपति वृन्द बन्धको बढायौ ॥ अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ । आपा नहिं जाना तूने, कैसा ज्ञानधारी रे। देहाश्रित करि क्रिया आपको, मानत शिवमगधारी रे ॥ भाप भ्रमविनाश आप आप जान पायौ, कर्णश्त सुवर्ण जिमि चितार चैन थायो। मेरो तन तनमय तन, मेरो मै तनको निकाल, यौँ कुवोध नश सुबोध मान जायौ ॥ आप०॥ यह सुजैनवैन ऐन, चिन्तत पुनि पुनि सुनैन, प्रगटौ अव भेद निज, निवेद गुन बढ़ायौ । माप०॥ यौ ही चित अचित मिश्र, ज्ञेय न अहेय हेय, इंधन धनंज जैसे, स्वामि योग गायौ ॥ माप०॥ #मर पोत छुटत झटति, वाछित तट निकटत जिमि, मोह राग रुख हरजिय, शिवतट निकटायो । आप०॥ विमल सौख्यमय सदीव, मैं हूँ मैं नहिं मजीव, जोत होत रज्जुमय, भुजंग मय भगायौ ॥ आप० ॥ यौं ही जिनचंद सुगुन, चिंतत परमारथ चुन, 'दौल' भाग नागो जव, अल्प पूर्व भायौ। भाप ॥
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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