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________________ ८६ .........: (थोकड़ा नं० ५७) .. . ... . श्री भगवती जी सूत्र के छठे शतक के दसवें । उद्देशे में जीव के 'सुख दुःखादि' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं' जीवाण य सुहं दुक्खं, जीवे जीवति तहेव भविया य । एगंतदुक्खं वेयण, अत्तमायाय केवली ॥ १-अहो भगवान् ! अन्यतीर्थी इस प्रकार कहते हैं कि राजगृह नगर में जितने जीव हैं उन जीवों के सुख दुःख बाहर निकाल कर हाथ में लेकर बोर की गुठली प्रमाण यावत् जूं लीख प्रमाण भी दिखाने में कोई समर्थ नहीं है । अहो भगवान् ! क्या यह ठीक है ? हे गौतम ! अन्यतीर्थियों का यह कहना मिथ्या है । मैं इस तरह से कहता हूँ कि सम्पूर्ण लोक के - जीवों के सुख दःख को बाहर निकाल कर हाथ में लेकर दिखाने .. में कोई समर्थ नहीं है। अहो भगवान् ? किस कारण से दिखाने - में समर्थ नहीं है ? हे गौतम ! जिस तरह तीन चुटकी बजावे उतने में इस जम्बूद्वीप की २१ परिक्रमा करे ऐसी शीघ्रगति वाला कोई देव सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में व्याप्त होवे ऐसा गन्ध का डिब्बा खोल कर जम्बूद्वीप की २१ परिक्रमा करे उतने में गन्ध उड़ कर जीवों के नाक में प्रवेश करे उस गन्ध को अलग निकाल कर बताने में कोई समर्थ नहीं है, इसी तरह जीवों के .... सुख दुःख को बाहर निकाल कर बताने में कोई समर्थ नहीं
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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