________________
।
८८ लोकों से लेकर सिद्धशिला तक १५ ठिकानों के नीचे बादर पृथ्वीकाय, बादर अग्निकाय नहीं है परन्तु. विग्रह गति वाले जीव पाये जाते हैं। नवमे देवलोक से लेकर सिद्धशिला तक इन नौ ठिकानों के नीचे बादर अप्काय भी नहीं है परन्तु विग्रह गति वाले जीव पाये जाते हैं । २२ ही ठिकानों के नीचे चन्द्र सूर्य आदि नहीं है, चन्द्र सूर्य आदि की प्रभा भी नहीं है। सेवं भंते !
सेवं भंते !! (थोकड़ा नं०५६ ) श्री भगवतीजी सूत्र के छठे शतक के आठवें उद्देशे में 'आयुष्य बन्ध' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं।
१-अहो भगवान् ! आयुष्य बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? हे गौतम ! आयुष्य वन्ध छह प्रकार का कहा गया है-१ जातिनाम-निधत्तायु, २ गति नाम निधत्तायु, ३ स्थिति नाम निधत्तायु, ४ अवगाहना नाम निधत्तायु, ५ प्रदेश नाम निधत्तायु, ६ अनुभाग नाम निधत्तायु । ये ६ निधत्त ( ढीला) बन्ध आसरी हैं और ६ निकाचित ( गाढ़ा-मजबूत ) बन्ध आसरी हैं। ये १२ एक जीव अासरी और १२ बहुत (घणा) जीव प्रासरी, ये २४ अलावा हुए । २४ समुच्चय के और २४ नीच गोत्र के साथ बंधने वाले तथा २४ उच्च गोत्र के साथ बंधने वाले, ये ७२ अलावा हुए । इनको समुच्चय जीव और २४ दण्डक, इन २५ से गुणा करने से १८०० अलावा होते हैं। १. सेवं भंते !.
. .. . सेवं भंते !!.....