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... (थोकड़ा नं०५५) . .. श्री भगवतीजी सूत्र के छठे शतक के आठवें उद्देशे में 'पृथ्वी', आदि का थोकड़ा चलता है सो
तमुकाए कप्पपणए अगणी पुढवी य अगणिपुढवीसु । ... आऊ तेऊ वणस्सइ, कप्पुवरिम कण्हराईसु ॥ ..१-अहो भगवान् ! पृथ्वियाँ कितनी हैं ? हे गौतम ! पृथ्वियाँ ८ हैं ( ७ नरक, १ ईषत्-प्राग्भारा- सिद्धशिला)। - २–अहो भगवान् ! क्या ७ नरक, १२ देवलोक; नव ग्रैवेयक, पांच अनुत्तर विमान, १ सिद्धशिला इन २२ ठिकानों के नीचे घर, हाट, ग्रामादि हैं ? हे गौतम ! नहीं हैं।
३-अहो भगवान् ! नारकी और देवलोकों के नीचे गाज, बीज, मेघ, बादल, वृष्टि कौन करते हैं ? हे गौतम ! पहली दूसरी नारकी के नीचे गाज, वीज, मेघ, बादल, वृष्टि देव, असुर कुमार और नागकुमार ये ३ करते हैं। तीसरी नरक, पहला दूसरा देवलोक के नीचे देव और असुरकुमार ये दो करते हैं। शेष ४ नरक, और तीसरे देवलोक से बारहवें देवलोक तक, इन १४. के नीचे देव (वैमानिक देव) करते हैं ( असुरकुमार, नागकुमार नहीं)। नव ग्रैवेयक, पांच अनुत्तर विमान और सिद्धशिला के नीचे कोई नहीं करता । सात नरकों के नीचे बादर अग्नि- . काय नहीं है परन्तु विग्रह गति वाले जीव पाये जाते हैं । देव