SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८५ पाँच स्थावर मेरु पर्वत से छह दिशाओं में अंगुल के संख्यातवें भाग से असंख्यात हजार योजन लोकान्त तक एक प्रदेशी श्रेणी (विदिशा ) को छोड़ कर चाहे जहाँ उत्पन्न होते हैं । इनमें भी पूर्वोक्त प्रकार से दो दो अलावा ( आलापक) कहना | इस तरह पाँच स्थावर के छह दिशा श्रासरी ६० लावा हुए और स के १६ दण्डकों के ३८ अलावा हुए। ये सब मिलकर ६८ अलावा हुए ठिकाणा (स्थान) यसरी तो अलावा होते हैं । ठिकाणा यसरी अनेक लावों में पहला अलावा देश थकी समुद्धात इलिकागति का है और दूसरा अलावा सर्व थकी समुद्घात डेडका ( मेढक ) गति का है । सेवं भंते !! सेवं भंते ! ( थोकड़ा नं० ५४ ) श्री भगवतीजी सूत्र के छठे शतक के सातवें उद्देशे में 'काल विशेषण' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं- १ अहो भगवान् ! कोठा में खाई आदि में बन्द किये हुए छांदण दिये हुए धान की योनि (अंकुर उत्पन्न करने की शक्ति ) कितने काल तक रहती है ? हे गौतम ! जधन्य अन्तर्मुहूर्तः सचित रहती है, पीछे अचित्त श्रवीज हो जाती है, उत्कृष्ट शालि ( कलमी आदि अनेक जाति के चावल ), व्रीहि ( सामान्य जाति * जघन्य सर्व धान की योनि अन्तर्मुहूर्त तक सचित्त रहती है ।
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy