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________________ ८४ हैं | इस तरह सब के नरकावासा कह देना यावत् पांच अनुत्तर विमान तक कह देना चाहिए । ३ – श्रहो भगवान् ! जो जीव मारणान्तिक समुद्घात करके रत्नप्रभा नरक में नारकीपने उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जीव वहाँ जाकर आहार करते हैं ? आहार को परिमाते हैं ? और शरीर बांधते हैं ? हे गौतम! कितनेक जीव वहाँ जाकर आहार लेते हैं, परिणमाते हैं, शरीर बांधते हैं । और कितनेक जीव+ वहाँ जाकर वापिस अपने पहले के शरीर में थाजाते हैं और फिर दूसरी बार मारणान्तिक समुद्घात करके मर कर वापिस रत्नप्रभा नरक में नैरयिकपने उत्पन्न होकर बाहार लेते हैं, परिणनाते हैं और शरीर बाँधते हैं । इसी तरह यावत् तमतमाप्रभा तक कह देना चाहिए । जिस तरह रत्नप्रभा का कहा उसी तरह. १८ दण्डक में ( १३ दण्डक देवता के, ३ दण्डक तीन विकलेन्द्रिय के, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य, ये १८ दण्डक में ) कह देना चाहिए । CODEPOR * जो जीव यहां से भर कर जाते हैं वे वहां जाकर आहार करते हैं यावत् शरीर बांधते हैं । + जो जीव मारणान्तिक समुद्घात करके बिना मरे ही यानी उस जीव के कितने आत्मप्रदेश रत्नप्रभा नरक में जाते हैं वहां जाकर आहार लिये बिना ही अपने पहले के शरीर में वापिस आते हैं फिर दूसरी बार मारणान्तिक समुद्घात करके मर कर वापिस रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होकर आहार लेते हैं, परिणामाते हैं यावत् शरीर बांधते हैं।
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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