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( थोकड़ा नं० ५२)
श्री भगवतीजी सूत्र के छठे शतक के पांचवें उदेशे में '८ कृष्णराज और लोकान्तिक देवों' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं—
:
१ - हो भगवान् ! कृष्णराजियाँ कितनी कही गई हैं ? हे गौतम! कृष्णराजियाँ ८ कही गई हैं !
२- अहो भगवान् ! ये कृष्णराजियाँ कहाँ पर हैं ? हे गौतम ! ये पांचवें देवलोक के तीसरे रिष्ट पड़तल में हैं । पूर्व में दो, पश्चिम में दो, उत्तर में दो और दक्षिण में दो, इस तरह चार दिशाओं में ८ कृष्णराजियाँ सम चौरस अखाड़ा के आकार हैं। पूर्व दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराज ने दक्षिण दिशा की बा कृष्णराज को स्पर्शी है । इसी तरह चारों दिशा में परस्पर स्पर्शी है । पूर्व और पश्चिम की बाह्य कृष्णराज छह - खुणी (छह कोणों वाली पट्कोण ) है । दक्षिण और उत्तर की बाह्य कृष्णराज तिखुणी ( त्रिकोण ) है । बाकी आभ्यन्तर की चारों ही कृष्णराजियाँ चोखुणी ( चतुष्कोण ) है ।
३ -- श्रहो भगवान् ! कृष्णराजियों की लम्बाई, चौड़ाई और परिधि कितनी है ? हे गौतम! संख्याता योजन की चौड़ी है, संख्याता योजन की लम्बी है और असंख्याता योजन की परिधि है ।.
गाथा इसप्रकार है
पुन्वाऽवरा छलंसा, तसा पुरा दाहिणुत्तरा बज्मा । अभिंतर चउरंस, सव्वा वि य करहराईओ ॥