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________________ ३ अन्धकार, ४ महाअन्धकार, ५ लोक अन्धकार, ६ लोक तमिस्त्र, ७ देव अन्धकार, ८ देव तमिस्त्र, ह देव अरण्य, १० देव व्यूह, ११ देव परिघ, १२ देव प्रतिक्षोभ, १३ अरुणोदक समुद्र । १३-अहो भगवान् ! तमस्काय क्या पृथ्वी का परिणाम है, पानी का परिणाम है, जीव का परिणाम है अथवा पुगल का परिणाम है ? हे गौतम ! तमस्काय पृथ्वी का परिणाम नहीं है, किन्तु पानी का, जीव का और पुद्गल का परिणाम है। १४-अहो अगवान ! क्या सब प्राणी अत जीव सत्त्व तमस्काय में पृथ्वीकायपणे यावत् त्रसकायपणे पहले उत्पन्न हुए हैं ? हे गौतम ! सब प्राणी भूत जीव सत्त्व अनेक बार अथवा अनन्त वार तमस्काय में पृथ्वीकायपणे यावत् सकायपणे उत्पन्न हुए हैं परन्तु बादर पृथ्वीकायपणे और बादर तेउकायपणे उत्पन्न नहीं हुए हैं। सेवं भंते ! सेवं भंते !! - प्रकार यह तमस्काया देवताओं के लिये दुर्भध है, उसका पार करना कठिन है, इसलिए इसको 'देव व्यूह' कहते हैं । ११ तमस्काय को देखकर देवता भतभीत होते हैं, इसलिए वह उनके गमन में बाधक है अतः इसको 'देवपरिघ' कहते हैं । १२ तमस्काय देवताओं के लिए क्षोस का कारण है, इसलिए इसको 'देव प्रतिक्षोस' कहते हैं । १३ तमस्काय अरु__णोदक समुद्र के पानी का विकार है, इसलिए इसको 'अरुणोदक समुद्र
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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