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________________ ७७ समापन्न ( विग्रहगति करते हुए ) बांदर पृथ्वीकाय और बादर निकाय के जीव हो सकते हैं । सूर्य ग्रह, १० - - - अहो भगवान् ! क्या तमस्काय में चन्द्र, नक्षत्र, तारा हैं ? हे गौतम! चन्द्र, सूर्य आदि नहीं हैं किन्तु तमस्काय के पास में चन्द्र-सूर्य की प्रभा पड़ती है परन्तु वह प्रभा सरीखी है । --- ११ - - अहो भगवान् ! तमस्काय का वर्ण कैसा है ? हे गौतम ! तमस्काय का वर्ण काला भयंकर, डरावना है। कितनेक देव तमस्काय को देखते ही क्षोभ पाते हैं और अगर कोई देवता तमस्काय में प्रवेश करता है तो शरीर और मन की चंचलता से जल्दी उसको पार कर जाता है । १२ – अहो भगवान् ! तमस्काय के कितने नाम हैं- ? हे गौतम ! तमस्काय के १३ नाम हैं- १ तम, २ तमस्काय, * यहां तमस्काय के १३ नाम कहे गये हैं । उनका अर्थ इस प्रकार है - १ अन्धकार रूप होने से इसको 'तम' कहते हैं । २ अन्धकार का ढिगला ( समूह ) रूप होने से इसे 'तमस्काय' कहते हैं । ३ तमो रूप होने से इसे अन्धकार कहते हैं । ४ महातमो रूप होने से इसे 'महाअन्धकार' कहते हैं । ५-६ लोक में इस प्रकार का दूसरा अन्धकार न होने से इसे 'लोकान्धकार' और 'लोकतमिस्र' कहते हैं । ७-८ तमस्काय में किसी प्रकार का उदयोत (प्रकाश) न होने से बह देवों के लिए भी अन्धकार रूप है, इसलिए इसको देवअन्धकार और देवतमित्र कहते हैं । ६ बलवान् देवता के भय से भागते हुए देवता के लिए यह एक प्रकार का जंगल रूप होने से यह शरणभूत है, इसलिए इसको 'देव अरण्य' कहते हैं । १० जिस प्रकार चक्रव्यूह का भेदन करना कठिन होता है, उसी
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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