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गौतम ! समुच्चय जीव, मनुष्य तीनों ही मांगों को करते हैं। तिथंच पंचेन्द्रिय २ भांगों को ( अपचक्खाण और पचक्खाणापञ्चक्खाण को) करता है । शेष २२ दंडक के जीव सिर्फ एक भांगा (अपचक्वाण) करते हैं।
४-अहो भगवान् ! क्या जीव पञ्चरखाण में आयुष्य बांधते हैं या अपच्चखाण में आयुष्य बांधते हैं ? या पच्चक्खाणापच्चरखाण में आयुष्य बांधते हैं ? हे गौतम ! समुच्चय जीव और वैमानिक देवों में उत्पन्न होने वाले जीव पच्चक्खाण आदि तीनों भागों में आयुष्य बांधते है । शेष २३ दंडक के जीव अपच्चक्खाण में आयुष्य बांधते हैं । पच्चक्खाण की गति वैमानिक ही है।
सेवं भंते ! सेवं भंते !!
(थोकड़ा नं. ५१) श्री भगवतीजी सूत्र के छठे शतक के पांचवें उद्देशे में 'तमस्काय' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं
१-अहो भगवान् ! तमस्काय किस की बनी हुई है ? हे गौतम ! तमस्काय पानी की बनी हुई है।
२---अहो भगवान् ! तमस्काय कहाँ से उठी है (शुरू हुई है ) और इसका अन्त कहाँ हुआ है ? हे गौतम ! इस जम्बूद्वीप के बाहर असंख्याता द्वीप समुद्रों को उल्लंघन कर आगे जाने पर अरुणवर द्वीप आता है। उसकी वेदिका के बाहर के चर
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