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________________ ७४ गौतम ! समुच्चय जीव, मनुष्य तीनों ही मांगों को करते हैं। तिथंच पंचेन्द्रिय २ भांगों को ( अपचक्खाण और पचक्खाणापञ्चक्खाण को) करता है । शेष २२ दंडक के जीव सिर्फ एक भांगा (अपचक्वाण) करते हैं। ४-अहो भगवान् ! क्या जीव पञ्चरखाण में आयुष्य बांधते हैं या अपच्चखाण में आयुष्य बांधते हैं ? या पच्चक्खाणापच्चरखाण में आयुष्य बांधते हैं ? हे गौतम ! समुच्चय जीव और वैमानिक देवों में उत्पन्न होने वाले जीव पच्चक्खाण आदि तीनों भागों में आयुष्य बांधते है । शेष २३ दंडक के जीव अपच्चक्खाण में आयुष्य बांधते हैं । पच्चक्खाण की गति वैमानिक ही है। सेवं भंते ! सेवं भंते !! (थोकड़ा नं. ५१) श्री भगवतीजी सूत्र के छठे शतक के पांचवें उद्देशे में 'तमस्काय' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं १-अहो भगवान् ! तमस्काय किस की बनी हुई है ? हे गौतम ! तमस्काय पानी की बनी हुई है। २---अहो भगवान् ! तमस्काय कहाँ से उठी है (शुरू हुई है ) और इसका अन्त कहाँ हुआ है ? हे गौतम ! इस जम्बूद्वीप के बाहर असंख्याता द्वीप समुद्रों को उल्लंघन कर आगे जाने पर अरुणवर द्वीप आता है। उसकी वेदिका के बाहर के चर hcg
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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