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मान्त से ४२ हजार योजन अरुणोदक समुद्र में जाने पर वहाँ जल के उपरिभाग से तमस्काया उठी है । एक प्रदेशी श्रेणी १७२१ योजन ऊंची गई है। पीछे तिरछी विस्तृत होती हुई पहला दूसरा तीसरा चौथा, इन चार देवलोकों को ढक कर पांचवें ब्रह्मदेवलोक के तीसरे रिष्ट विमान पाथड़े तक चली गई है । यहाँ इसका अन्त है ।
२ -- श्रहो भगवान् ! तमस्काय का क्या संठाण ( संस्थान ) १ हे गौतम ! नीचें तो शरावला ( मिट्टी के दीपक ) के आकार है, ऊपर कूकड़ पींजरा के आकार है ।
शरावबुन्न
* यहाँ 'एक प्रदेशी श्रेणी' का मतलब एक प्रदेश वाली श्रेणी. ऐसा नहीं करना चाहिए, किन्तु यहाँ एक प्रदेशी श्रेणी का मतलब 'समभित्ति' रूप श्रेणी अर्थात् नीचे से लेकर ऊपर तक एक समान भींत ( दीवाल ) रूप श्रेणी है। यहाँ 'एक प्रदेश वाली श्रेणी' ऐसा अर्थ करना ठीक नहीं बैठ सकता है. क्योंकि तमस्काय स्तिबुकाकार जल जीव रूप है । उन जीवों के रहने के लिये असंख्यात आकाशप्रदेशों की आवश्यकता है । एक प्रदेश वाली श्रेणी का विस्तार बहुत थोड़ा होता है । उसमें वे जल जीव कैसे रह सकते हैं ? इसलिए यहाँ एक प्रदेश वाली श्रेणी ऐसा अर्थ घटित नहीं होता है किंतु 'समभित्ति रूप श्रेणी' यह अर्थ घटित होता है।