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जीव ११ दण्डक में एक जीव अासरी सिय सप्रदेशी सिय अप्रदेशी, बहुत जीव आसरी स्त्रीवेद पुरुषवेद में जीवादि में ( समुच्चय जीव और १५ दण्डक में ) तीन तीन मांगे होते हैं। नपुंसक वेद में एकेन्द्रिय को छोड़ कर समुच्चय जीव और ६ दण्डक में तीन तीन भांगे, एकेन्द्रिय में एक तीसरा भांगा होता है । अवेदी जीव मनुष्य सिद्ध भगवान् में एक जीव बासरी सिय सप्रदेशी सिय अत्रदेशी, बहुत जीव प्रासरी तीन, तीन
भांगे होते हैं।.
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.... १३ शरीर द्वार-सशरीरी और तैजस कार्मण शरीर में समुच्चय एक जीब बासरी, बहुत जीव प्रासरी नियमा सप्रदेशी।
२४ दण्डक में एक जीव प्रासरी सिय सप्रदेशी सिय अप्रदेशी- बहुत जीव प्रासरी एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन तीन भांगे, एकेन्द्रिय में एक तीसरा भांगा होता है। अशरीरी समुच्चय जीव, सिद्ध भगवान् में एक जीव बासरी सिय सप्रदेशी सिय अप्रदेशी, बहुत जीव बासरी तीन तीन भांगे होते हैं । औदारिक शरीर समुच्चय जीव, १० दण्डक में एक जीव आसरीः सिय सप्रदेशी सिय अप्रदेशी, बहुत जीव आसरी जीव एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन तीन भांगे, जीव एकेन्द्रिय में एक तीसरा भांगा होता है। वैक्रिय शरीर १७ दंडक में एक जीव आसरी सिय सप्रदेशी सिय अप्रदेशी, बहुत जीव आसरी १६ दंडक में तीन तीन भांगे समुच्चय जीव वायुकाय में एक तीसरा भांगा होता है । आहा