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न्द्रिय को छोड़कर तीन तीन भांगे, एकेन्द्रिय में एक तीसरा भांगा होता है । मन योगी समुच्चय जीव १६ दण्डक में, वचन योगी समुच्चय जीव १६ दण्डक में एक जीव श्रासरी सिय सप्रदेशी सिय अनदेशी, बहुत जीव आसरी तीन तीन मांगे होते हैं। काययोगी-समुच्चय जीव २४ दण्डक एक जीव अासरी सिय सप्रदेशी सिय अप्रदेशी, बहुत जीव आसरी सम्मुचय जीव और १६ दण्डक में तीन तीन मांगे होते हैं और एकेन्द्रिय में एक तीसरा मांगा होता है। अयोगी जीवं मनुष्य सिद्ध भगवान् में एक जीव आसरी सिय सप्रदेशी सिय अप्रदेशीबहुत जीव आसरी जीव सिद्ध भगवान् में तीन तीन भांगे, मनुष्य में छह भांगे होते हैं।
११ उपयोग द्वार-सागारवउत्ताणामारवउत्ता ( साकार उपयोग, अनाकार उपयोग), समुच्चय जीव २४ दण्डक सिद्ध भगवान में एक जीव आसरी सिय सत्रदेशी सिय अप्रदेशी, बहुत जीव आसरी जीव एकेन्द्रिय छोड़कर बाकी १६ दण्डक में तीन तीन भांगे, जीव एकेन्द्रिय में एक तीसरा मांगा होता है।
१२ वेद द्वार-सवेदी समुच्चय जीव, २४ दण्डक में एक : जीव आसरी सिय सप्रदेशी सिय अप्रदेशी, बहुत जीव अासरी
एकेन्द्रिय को छोड़ कर समुच्चय जीव और १६ दण्डक में तीन तीन भांगे, एकेन्द्रिय में एक तीसरी भांगा होता है । स्त्रीवेद, - पुरुषवेद समुच्चय जीव १५ दण्डक में, नपुंसक वेदः समुच्चय