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८ कषाय द्वार-सकषायी समुच्चय जीव २४ दण्डक में जीव ासरी सिय सप्रदेशी सिय अप्रदेशी, बहुत जीव सरी एकेन्द्रिय को छोड़ कर समुच्चय जीव १६ दण्डक तीन तीन भांगे, एकेन्द्रिय में एक तीसरा मांगा ! क्रोधकषायी चय जीव २४ दण्डक में एक जीव आसरी सिय सप्रदेशी, घ अप्रदेशी, बहुत जीव आसरी जीव एकेन्द्रिय को छोड़ कर न तीन भांगे, जीव एकेन्द्रिय में तीसरा भांगा नवरं देवता बह भांगे । मानकषायी मायाकपायी समुच्चय जीच, २४ दण्डक एक जीव आसरी सिय सप्तदेशी सिय अप्रदेशी, बहुत जीवासरी व एकेन्द्रिय को छोड़ कर तीन तीन भांगे, जीव एकेन्द्रिय तीसरा मांगा नवरं नारकी देवता में छह २ मांगे । लोभ कषायी
ॐ शंका-समुच्चय जीव में सकषायी आसरी तीन भांगे कहे और व सान माया लोभ आसरी एक तीसरा भांगा ही कहा, इसका क्या
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रण?
समाधान-सकषायी में अकषायीपने से आया हुआ एक जीव भी पा जा सकता है । इस कारण से तीन भांगे बनते हैं । क्रोध मान या लोभ में एकेन्द्रिय आसरी अनन्ता ही जीव क्रोध कप यी के सानगयी और मानकषायी के मायाकषायी इत्यादि रूप से अदल बदल रूप होते रहते हैं। इस कारण से एक जीव क्रोधकषायी मानकषायी याकषायी लोभकषायी नहीं पाया जाता । इसलिए एक तीसरा भांगा ही ता है। इतनी जगह समुच्चय जीव में एकेन्द्रिय साथ में होते हुए तीन तीन भांगे हैं-१ असंज्ञी में, २ मिथ्यादृष्टि में, ३ असंयति ४ सकषायी में, ५ समुच्चय अज्ञानी, मति अज्ञानी, श्रुत अज्ञानो में, सवेदी नपुंसक वेदी में, ७ काय योगी में ।