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________________ ६३ अबन्ध । तीन अज्ञान में ७ कर्मों की नियमो आयुकर्म की भजना | ११ - योगद्वार - तीन योग में ७ कर्मों की भजना, वेदनीय की नियमा । अयोगी (जोगी) में ८ कर्मों का अबन्ध | १२ - उपयोग द्वार - सागरखंडत्ता मणागारखंडत्ता (साकारोपयोग, अनाकारोपयोग ) से ८ कर्मों की भजना | १३ - आहारक द्वार - आहारक में ७ कर्मों की भजना, वेदate की नियमा । अनाहारक में ७ कर्मों की भजना, आयुकर्म का बन्ध । १४- सूक्ष्म द्वार - सूक्ष्म में ७ कर्मों की नियमा, आयुकर्म की भजना | बादर में ८ कर्मों की भजना । नो सूक्ष्म नो बादर + में ८ कर्मों का अबन्ध । १५- चरम द्वार- चरम और अचरम में ७ कर्मों की भजना । सेवं भंते !! - ( थोकड़ा नं० ४६ ) सेवं भंते ! श्री भगवतीजी सूत्र के छठे शतक के चौथे उद्देशे में 'काला' देश' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं- सपएसा आहार भविय सरणी, लेस्सा दिट्टि संजय कसाए। गाणे जोगुवोगे, वेदे य सरीर पज्जती ॥ १ ॥ १ सप्रदेश द्वार, २ आहारक द्वार, ३ भव्य द्वार, ४ संज्ञौ द्वार, ५ लेश्या द्वार, ६ दृष्टि द्वार, ७ संयत द्वार, ८ कषाय •
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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