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________________ .. नाम : बोल | नाम ... बोल.. नाम . बोल पहली नारकी में ३४. बारहवें देवलोक चौइन्द्रिय, असन्नी दूसरी से सातवीं..|तक ३३ | तियश्च पंचेन्द्रियमें २८ ... नारकी तक ३३ नवग्रेवेयक में नवग्रेवेयक में ३२ ३२ सेन्नी तिर्यञ्च पति पांच अनुत्तर. पंचेन्द्रिय में । ३६ वाणव्यन्तर में ३५ विमान में २६ असन्नी मनुष्य में २२ ज्योतिषी पहला पांच स्थावर में २३ / सन्नी मनुष्य में ४५ दूसरा देवलोक में ३४ वेइन्द्रिय . समुच्चय जीव में ५० तीसरे से तेइन्द्रिय में २७/ । ... ५० बोलों में से किस बोल में कितने कर्मों का बन्ध होता है सो कहते हैं १-वेद द्वार-तीन वेदों में ७ कर्मों की नियमा, आयुकर्म की भजना । अवेदी में ७ कर्मों की भजना, आयुकर्म का अवन्ध। . . .. . ..... ........ २--संजतद्वार-संजति में ८ कर्मों की भजना। असंजति, -संजतासंजति में ७ कर्मों की नियमा, आयुकर्म की भजना । नो संजति नो असंजति नो संजतासंजति में ८ कर्मों का प्रबन्ध । ३-दृष्टि द्वार-समदृष्टि में ८ कर्मों की भजना। मिथ्यादृष्टि में.७ कर्मों की नियमा, आयुकर्म की भजना। मिश्रदृष्टि में ७ कर्मों की नियमा, आयुकर्म का अबन्ध। .. ..
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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