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२ भेद--सागारवउता (साकारोपयोग-ज्ञान) अणागारवउता (अनाकारोपयोग-दर्शन )। १३ आहारक द्वार के दो भेदआहारक, अनाहारक । १४ सूक्ष्मद्वार के ३ भेद----सूक्ष्म, चादर, नो सूक्ष्म नो बादर । १५ चरम द्वार के २ भेद-चरम, अचरम । ये कुल ५० बोल हुए। _इनमें से जिन जिन जीवों में जितने जितने बोल पाये जाते हैं सो समुच्चय ( धड़ा ) रूप से कहे जाते हैं-पहली नारकी में बोल पावे ३४ । शेष ६ नारकी में बोल पावे ३३-३३ । भवनपति वाणव्यन्तर देवों में बोल पावे ३५ । ज्योतिषी देवों में तथा पहले दूसरे देवलोक में बोल पावे ३४ । तीसरे से वारहवें देवलोक तक बोल पावे ३३ । नवग्रैवेयक में बोल पावे ३२ । पांच अनुत्तर विमानों में बोल पावे २६-२६ । पांच स्थावर में बोल पावे २३, वेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय में बोल पावे २७। चौहन्द्रिय में और असन्नी तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय में बोल पावे २८-२८ । सन्नी तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय में बोल पावे ३६ । असन्नी मनुष्य में बोल पावे २२ । सन्नी मनुष्य में बोल पावे ४५ । सिद्ध भगवान् में बोल पावे १६ । समुच्चय जीव में बोल पावे ५०। . .
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