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वेयः संजय दिडि, सएणी भवि दंसण पज्जते । .... - भासग परित्तणाण, जोगुवोग आहार सुहुम चरमेसु ॥. .
१. वेद द्वार, २ संजन ( संयत ) द्वार, ३ दृष्टि द्वार, ४ संज्ञी द्वार, ५ भवी द्वार, ६ दर्शन द्वार, ७ पर्याप्त द्वार, ८ भाषक द्वार, ६ परित्त ( पड़त) द्वार, १० ज्ञान द्वार, ११. योग द्वार, १२ उपयोग द्वार, १३ आहारक द्वार, १४ सूक्ष्म द्वार, १५ चरम द्वार।
१-वेद द्वार के ४ भेद -स्त्रोवेद, पुरुषवेद, नपुं- सकवेद, अवेदी । २-संजत द्वार के ४ भेद-संजति, 'असंजति, संजतासंजति, नोसंजति नो असंजति नो संजतासंजति । ३ दृष्टिद्वार के ३ भेद-सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सभ्यगमिथ्यादृष्टि। ४ संज्ञी ( सन्नी ) द्वार के ३ भेद-संज्ञी, असंज्ञी, नोसंज्ञी नोअसंज्ञी । ५ भवीद्वार के २ सेद-भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, नो भवसिद्धिक नो अभवसिद्धिक । ६ दर्शनद्वार के ४ भेद - चक्षुदर्शनं, अचनुदर्शन, अवधिदर्शन, केवलदर्शन । ७ पर्याप्त द्वार के ३ भेद-पर्याप्ता, अपर्याप्ता, नो पर्याप्ता नो अपर्याप्ता । ८ भाषक द्वार के २ भेद-भाषक, अभापक । ६ परित्त द्वार के ३ भेद-परित्त (पड़त), अपरित्त (अपड़त), नोपरित्त नो अपरित्त (नो पड़त नो अपड़त)।१० ज्ञानद्वार के ८ भेद:--- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवलज्ञान, मति
अज्ञान, श्रुतंत्रज्ञान, विभंगज्ञान । ११ योगद्वार के ४ भेद---मन .. __ योग, वचन योग, काया योग, अयोगी । १२ उपयोग द्वार के....