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________________ ५८ सादि सान्त हैं, २- सिद्धगति की अपेक्षा सिद्ध जीव सादि अनन्त हैं, ३ भव सिद्धिक लब्धि की अपेक्षा अनादि सान्त हैं, ४ अभव सिद्धिक जीव संसार की अपेक्षा अनादि अनन्त हैं । ६ - हो भगवान् ! कर्म कितने हैं ? हे गौतम कर्म आठ १ ज्ञानावरणीय, २ दर्शनावरणीय, ३ वेदनीय, ४ मोहनीय, ५ आयुष्य, ६ नाम, ७ गोत्र, ८ अन्तराय | SVENORES - ७- अहो भगवान् ! कर्मों की बन्धस्थिति कितनी कही गई है ? हे गौतम! ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय इन तीन कर्मों की जघन्य स्थिति श्रन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट ३०-३० कोडाकोडी सागर की, वेदनीय की जघन्य स्थिति दो समय की, उत्कृष्ट ३० कोडाकोडी सागर की इन चारों कर्मों का बाधा काल २ - ३ हजार वर्ष का है। सोहनीय की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की, उत्कृष्ट ७० कोडाकोडी सागर की है अबाधा काल ७ हजार वर्ष का है। आयुकर्म की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की, उत्कृष्ट ३३ सागर कोडपूर्व का तीसरा भाग अधिक । नामकर्म और गोत्रकर्म की स्थिति जघन्य मुहूर्त की, उत्कृष्ट २० कोडाकोडी सागर की, अबाधाकाल २ हजार वर्ष का है । सेवं संते !. सेवं भंते !! C ( थोकडा नं० ४८ ) श्री भगवतीजी सूत्र के छठे शतक के तीसरे उद्देशे में '५० बोलों की बन्धी' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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