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सादि सान्त हैं, २- सिद्धगति की अपेक्षा सिद्ध जीव सादि अनन्त हैं, ३ भव सिद्धिक लब्धि की अपेक्षा अनादि सान्त हैं, ४ अभव सिद्धिक जीव संसार की अपेक्षा अनादि अनन्त हैं ।
६ - हो भगवान् ! कर्म कितने हैं ? हे गौतम कर्म आठ १ ज्ञानावरणीय, २ दर्शनावरणीय, ३ वेदनीय, ४ मोहनीय, ५ आयुष्य, ६ नाम, ७ गोत्र, ८ अन्तराय |
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७- अहो भगवान् ! कर्मों की बन्धस्थिति कितनी कही गई है ? हे गौतम! ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय इन तीन कर्मों की जघन्य स्थिति श्रन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट ३०-३० कोडाकोडी सागर की, वेदनीय की जघन्य स्थिति दो समय की, उत्कृष्ट ३० कोडाकोडी सागर की इन चारों कर्मों का बाधा काल २ - ३ हजार वर्ष का है। सोहनीय की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की, उत्कृष्ट ७० कोडाकोडी सागर की है अबाधा काल ७ हजार वर्ष का है। आयुकर्म की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की, उत्कृष्ट ३३ सागर कोडपूर्व का तीसरा भाग अधिक । नामकर्म और गोत्रकर्म की स्थिति जघन्य मुहूर्त की, उत्कृष्ट २० कोडाकोडी सागर की, अबाधाकाल २ हजार वर्ष का है । सेवं संते !. सेवं भंते !!
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( थोकडा नं० ४८ ) श्री भगवतीजी सूत्र के छठे शतक के तीसरे उद्देशे में '५० बोलों की बन्धी' का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं