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________________ ४६ दण्डक के जीवj खासरी - नरकगति, ५ स्थावर, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय इन ८ दush के जीवों के अशुभ पुद्गल हैं, अशुभ पुलपने परिणमते हैं, इसलिए अन्धकार है । देवता के १३ दण्डक में शुभ पुद्गल हैं, वे शुभ पुद्गलपने परिणमते हैं, इसलिए उदघोत है । चोइन्द्रिय तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय और मनुष्य इन तीन दण्डकों में शुभाशुभ पुद्गल हैं, वे शुभाशुभ पुंगलपने परिणमते हैं, इसलिए उदयोत और अन्धकार दोनो ही हैं । ३ - हो भगवान् ! क्या जीव समय, श्रावलिका यावत् उत्सर्पिणी अवसर्पिणी को जानते हैं ? हे गौतम ! २३ दण्डक ( मनुष्य का एक दण्डक छोड़कर ) के जीव अपने अपने स्थान पर रहे हुए समय, श्रावलिका यावत् उत्सर्पिणी अवसर्पिणी को नहीं जानते हैं क्योंकि समय आदि का मान प्रमाण मनुष्य लोक में ही है। मनुष्य लोक में रहा हुआ मनुष्य समय, आवलिका यावत् उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल को जानता है क्योंकि काल का मान, प्रमाण, सूर्य का उदय अस्त, दिन रात मनुष्यक्षेत्र में ही है । ४ - तेईसवें तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथ स्वामी के शिष्य स्थविर मुनियों ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास आकर इस प्रकार पूछा कि हो भगवान् ! क्या असंख्याता लोक में अनन्ता रात्रि दिवस उत्पन्न हुए ? उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होगे ? नष्ट हुए, नष्ट होते हैं और नष्ट होवेंगे ? परिता (निश्चित
SR No.010034
Book TitleBhagavati Sutra ke Thokdo ka Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1957
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size6 MB
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