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४८ ४-सोवचया में भांगो पावे १ वड्ढमाण । सावचया में भांगो पाये १-हायमान । सोवचया सावचया में भांगा पावे ३-चड्ढमाण, हायमान, अवढ़िया । निरुपचय निरवचया में भांगो पावे १-अवड्डिया) सेवं भंते !
सेवं भंते !! (थोकड़ा नं० ४५) श्री भगवतीजी सूत्र के पांचवें शतक के नवमे उद्देशे में 'राजगृह नगर' आदि का थोकड़ा चलता है सो कहते हैं
किमियं रायगिहं ति य, उज्जोए अंधयार समए य । पासंति वासि पुच्छा, राइंदिय देवलोगा य ॥१॥
१-अहो भगवान् ! राजगृह नगर किसको कहना चाहिए ? हे गौतम ! राजगृह नगर में पृथ्वी आदि सचित अचित्त मिश्र द्रव्य हैं जीव अजीव त्रस स्थावर जितनी वस्तुएं हैं उनको राजगृह नगर कहना चाहिए ।
२-अहो भगवान् ! क्या दिन में उदयोत ( प्रकाश ) और रात्रि में अन्धकार होता है ? हाँ, गौतम ! होता है। अहो भगवान ! इसका क्या कारण है ? हे गौतम ! दिन के शुभ पुद्गल हैं. वे शुभ पुद्गलपणे परिणमते हैं, इसलिए दिन में उदयोत होता है। रात्रि के पुदल अशुभ हैं, वे प्रशभ प्रदालपणे परिणमते हैं। इसलिए रात्रि में अन्धकार होता है। ...